आस्था ये शब्द जितना छोटा है उतना बड़ा इसका अर्थ है. आस्था हो तो पत्थर को भी भगवान मानकर पूजा जा सकता है. ये आस्था ही है जो हमें इस दुनिया में ईश्वर के होने का प्रमाण देती है. एक आस्था ये भी है कि जब कभी हम और आप मन्दिर जाएं तो अपने जूते – चप्पल मंदिर के प्रांगण के बाहर ही उतारें. कारण, इसे ईश्वर का अपमान समझा जाता है. पर इस निराली दुनिया में जितने असंंख्य भगवान है उतने ही असंख्य उनसे जुड़ी आस्था. अब भोपाल के जीजीबाई मंदिर को ही देख लीजिए.
यहां मां दुर्गा को नई चप्पल और सैंडल चढ़ाए जाते हैं. जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं यहां पूजा-अर्चना में मां दुर्गा को नई चप्पल और सैंडल चढ़ाए जाते हैं.
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दरअसल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के कोलार इलाके में एक छोटी सी पहाड़ी पर मां दुर्गा का सिद्धिदात्री पहाड़वाला मंदिर है. इसे लोग जीजीबाई मंदिर के नाम से भी जानते हैं. सदियों से मान्यता है कि यहां मन्नतें पूरी होने के बाद मां दुर्गा को चप्पल या सैंडल चढ़ाई जाएं. भक्तों की ये आस्था या मान्यता सुनने में थोड़ी अचरज में जरूर डाल देती है लेकिन इसके पीछे एक कहानी है. बताया जाता है कि लगभग 18 साल पहले यहां अशोकनगर से रहने आए ओमप्रकाश महाराज ने मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना के साथ शिव-पार्वती विवाह भी कराया था और खुद कन्यादान किया था. बस तब से ही वो न केवल मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं, बल्कि उन्हें अपनी बेटी मानकर उनका ध्यान भी रखते हैं.
ओमप्रकाश का कहना है कि यहां लोग पूजा करते हैं और मन्नतें मांगते है , फिर जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो मां सिद्धिदात्री को चप्पल चढ़ाते हैं. इतना ही नहीं गर्मियों में चप्पल के साथ-साथ चश्मा, टोपी और घड़ी भी चढ़ाई जाती है. एक बेटी की तरह मां दुर्गा की देखभाल की जाती है. दिन में दो-तीन बार उनके कपड़े बदले जाते हैं. खासकर जब ऐसा आभास होता है कि मां चढ़ाएं गए कपड़ों से खुश नहीं है तो उनके कपड़े दो-तीन बार बदले जाते हैं.
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ओमप्रकाश महाराज का कहना है कि भक्तों की आस्था मां दुर्गा को विदेशी चप्पलें तक चढ़ाने को ललायित कर देती है. दरअसल इस मंदिर में आने वाले कुछ भक्त अब विदेशों में बस गए हैं. और अब वो कभी सिंगापुर तो कभी पेरिस से मां दुर्गा के लिए विदेशी चप्पलें मन्नत स्वरूप भेजते हैं. मंदिर में चप्पल एक दिन चढ़ाने के बाद भक्तों या जरुरतमंदों में बांट दी जाती है. Next…
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