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महाभारत में ऐसे हुई थी कुंती, गांधारी और धृतराष्ट्र की मृत्यु, कलियुग का हुआ आगमन

अपमान, न्याय-अन्याय, बदला और विध्वंस कुछ ऐसे शब्द हमारे दिमाग में आते हैं जब हम महाभारत का नाम सुनते हैं. महाभारत के हर चरित्र की अपनी ही कहानियां है. हर किरदार का व्यक्तित्व उनकी परिस्थितियों, पुर्नजन्म आदि तत्वों से प्रभावित दिखाई देता हैं. उन किरदारों से आप खुद को जोड़कर देख सकते हैं. इसके अलावा महाभारत प्रतिज्ञाओं के लिए भी जाना जाता है. युद्ध से परे महाभारत में ऐसी कई कहानियां है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.

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जैसे, कौरव और पांडव युद्ध, पांडवों का स्वर्ग गमन, श्रीकृष्ण की मृत्यु से जुड़ी आपने कई कहानियां पढ़ी होगी लेकिन क्या आपको महाभारत में कुंती, गांधारी और धृतराष्ट्र की मृत्यु से जुड़ी हुई कहानी पता है? महाभारत की एक कहानी से पता चलता है कि गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र ने अग्नि समाधि ली थी.

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सबकुछ त्यागकर किया अग्नि समाधि लेने का निर्णय

महाभारत के अनुसार युद्ध के बाद धृतराष्ट्र व गांधारी पांडवों के साथ 15 साल तक रहे. इसके बाद वे कुंती, विदुर व संजय के साथ वन में तपस्या करने चले गए. एक दिन जब वे गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई. दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती भागने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने उसी अग्नि में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए.

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इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया. माना जाता है कि पांडव स्वर्ग गमन कर चुके थे और श्रीकृष्ण बैकुंठ धाम में प्रस्थान कर चुके थे जिसके बाद कलियुग का आगमन शुरू हुआ था.

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