प्रकृति का सार्वभौमिक सत्य ये है कि प्रकृति के लिए सभी जीव समान है. सभी के लिए कर्म फल भी समान है. स्त्री और पुरूष ईश्वर की बनाई हुई अनुपम रचनाओं के अलावा ईश्वर की बनाई एक कृति ऐसी भी है जिनमें स्त्री और पुरूष दोनों के गुण पाए जाते हैं. शारीरिक रूप से इनकी बनावट अलग, भले ही हो लेकिन इनमें भी किसी अन्य मनुष्य की तरह ही भावनाएं होती है. संसारिक जीवन में इन्हें ‘किन्नर’ के नाम से जाना जाता है. महाभारत में किन्नर सुंदरी कहे जाने वाली शिखंडी का वर्णन मिलता है. कई पौराणिक कहानियों के अनुसार ऐसा माना जाता है. कि शिखंडी का जन्म एक स्त्री के रूप में हुआ था लेकिन बाद में भीष्म की मृत्यु का कारण बनने के लिए, शिखंडी में पुरूष युग्म उत्पन्न होने से वे स्त्री-पुरूष दोनों के गुण अर्जित करके ‘किन्नर’ रूप में परिवर्तित हो गई थी. महाभारत के अनुसार शिखंडी पूर्व जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी थी.
भीष्म की बताई गई इन चार आदतों को अपनाकर टल सकती अकाल मृत्यु
पूर्व जन्म में थी अम्बा
अम्बा काशीराज की पुत्री थी. उसकी दो और बहनें थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था. विवाह योग्य होने पर उसके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया. हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने अपने भाइ विचित्रवीर्य के लिए जो हस्तिनापुर का राजा भी था, काशीराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से हरण कर लिया. उन तीनों को वे हस्तिनापुर ले गए. वहां उन्हें अंबा के किसी और के प्रति आसक्त होने का पता चला. भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास पहुंचाने का प्रबंध कर दिया किंतु वहां से अम्बा तिरस्कृत होकर लौट आई.
अम्बा ने इसका उत्तरदायित्व भीष्म पर डाला और उनसे विवाह करने पर जोर दिया. भीष्म द्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा से बंधे होने का तर्क दिए जाने पर भी वह अपने निश्चय से विचलित नहीं हुई. अंततः अंम्बा ने प्रतिज्ञा की कि वह एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी. इसके लिए उसने घोर तपस्या की. उसका जन्म पुनः एक राजा की पुत्री के रूप में हुआ. पूर्वजन्म की स्मृतियों के कारण अम्बा ने पुनः अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए तपस्या आरंभ कर दी. भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया तब अंबा ने शिखंडी के रुप में महाराज द्रुपद की पुत्री के रुप में जन्म लिया.
क्या भीष्म पितामह ने कभी विवाह किया था? जानिए भीष्म की प्रतिज्ञाओं का रहस्य
ऐसे बनी स्त्री से किन्नर
सी. राजगोपालचारी द्वारा लिखित महाभारत के अनुसार शिखंडी जब पूर्वजन्म में अम्बा के रूप में न्याय मांगने के लिए जगह-जगह भटक रही थी, तो भगवान सुब्रह्मण्य ने उसकी व्यथा देखकर उसे कमल के फूलों का एक दिव्य हार दिया. इस हार के अनुसार ये हार जिस किसी योद्धा के गले में भी पहनाया जाता, उसमें असीम शक्ति उत्पन्न होती और उस योद्धा में भीष्म को मारने का बल का संचार होता. अम्बा पूर्वजन्म में इस हार को लेकर भटकती रही लेकिन किसी ने भी ये हार स्वीकार नहीं किया, क्योंकि कोई भी भीष्म से शत्रुता नहीं करना चाहता था.
इस तरह अम्बा ने फूलों के इस हार को राजा द्रुपद के द्वार पर लटकाकर आत्मदाह कर लिया. अगले जन्म में अम्बा ने राजा द्रुपद के घर में जन्म लिया. शिखंडी ने स्त्री रूप में जन्म लिया था लेकिन एक दिन उन्होंने द्वार पर उस हार को देखकर उसे पहन लिया. इस प्रकार उस हार की असीम शक्ति शिखंडी में समाहित हो गई और उसमें किसी पुरूष योद्धा जितना ही बल आ गया. इस तरह शिखंडी में जन्म से स्त्री गुण और हार के द्वारा पुरूष गुण भी समाहित हो गए और वे शिखंडी नामक ‘किन्नर’ बन गई. अंत में महाभारत के युद्ध में शिखंडी भीष्म पितामहा की मृत्यु का कारण बनी…Next
Read more
क्यों चुना गया कुरुक्षेत्र की भूमि को महाभारत युद्ध के लिए
Read Comments