महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से भी जाना जाता है. एक ऐसा धर्मयुद्ध जिसमें लक्ष्य केवल राज्य जीतना नहीं बल्कि अपना अधिकार अपने ही प्रियजनों से वापस लेना भी था. साथ ही द्रौपदी के भरी सभा में हुए अपमान के लिए न्याययुद्ध बहुत जरूरी था. महाभारत के युद्ध को इतिहास के सबसे बड़े रक्तरंजित युद्ध में से एक माना जाता है. इस युद्ध में कौरव और पांडव आमने-सामने खड़े थे लेकिन एक योद्धा ऐसा भी था, जो युद्ध में भाग ही नहीं लेना चाहता था लेकिन राजधर्म निभाने के लिए उन्हें कौरवों की तरफ से युद्ध में हिस्सा लेना पड़ा.
भीष्म पितामहा को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था, जिस वजह से वो युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा के रूप में देखे जाते थे. कौरव भाई इसलिए भीष्म को हमेशा से अपने खेमे में शामिल करना चाहते थे लेकिन भीष्म की अंतर आत्मा ये बात जानती थी कि पांडव न्याय की स्थापना के लिए युद्ध कर रहे हैं जबकि कौरव का साथ देना स्वंय एक पाप है. मन में इसी विचार के कारण भीष्म अपनी पूरी शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे. भीष्म को युद्ध में क्षीण होता देखकर दुर्योधन को भीष्म पर शंका होने लगी कि शायद अपने प्रेम के कारण भीष्म पांडवों के सामने अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं.
भीष्म के 5 सोने के तीर
जब कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और अपना रोष प्रकट करते हुए भीष्म से कहा आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं. ये सुनकर भीष्म पितामह को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत पांच सोने के तीर लिए और कुछ मंत्र पढ़े. मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल इन पांच तीरों से वे पांडवों का अंत कर देंगे. भीष्म की बात सुनकर भी दुर्योधन को भीष्म पितामह पर विश्वास नहीं हुआ और उसने तीर ले लिए और कहा कि वह कल सुबह इन तीरों को वापस लौटा देगा.
श्रीकृष्ण ने पांडवों को उन तीरों से ऐसे बचाया
जब श्रीकृष्ण को भीष्म के पांच तीरों के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन को वो घटना याद दिलवाई, जिसमें अर्जुन ने दुर्योधन के प्राण एक गंधर्व से बचाए थे.
तब दुर्योधन ने कहा था कि ‘तुम मुझसे बदले में कोई भी कीमती चीज मांग सकते हो’ श्रीकृष्ण की बात मानते हुए अर्जुन ने दुर्योधन के पास जाकर उसे अपना वचन दिलवाया. एक क्षत्रिय का वचन रखने के लिए दुर्योधन ने भीष्म के वो 5 सोने के तीर अर्जुन को दे दिए. इस तरह श्रीकृष्ण की युक्ति ने पांडवों के प्राण बचा लिए…Next
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