कहते हैं नफरत का कोई पैमाना नहीं होता बल्कि नफरत करने वालों को भी इस बात का अंदाजा नहीं होता कि वो असल में नफरत करने में खुद को ही जला रहे हैं. ऐसा नहीं है कि कलयुग में ही नफरत इतनी बढ़ चुकी है बल्कि आदिकाल से ऐसा होता हुआ आ रहा है. नफरत की ऐसी ही कहानी मिलती है विष्णुपुराण में, जिसमें एक राक्षस को भगवान विष्णु से की गई नफरत से जुड़ा प्रसंग मिलता है. हिरयणकश्यप नाम का राक्षस. जिसका पुत्र था भक्त प्रह्लाद. वो अपने पुत्र से भी नफरत करता था जिसका कारण था वो भगवान विष्णु का भक्त था.
अपने पुत्र को मरवाने की कई बार की कोशिश
उसने विष्णु भक्ति से परेशान होकर अपने पुत्र को कई बार मरवाने की कोशिश की. कभी गर्म खोलते तेल में डालकर तो कभी हाथी से कुचलवाकर लेकिन प्रभु की कृपा हमेशा भक्त पर बनी रही.
इस जगह का नाम रख दिया था ‘हरि-द्रोही’
घृणा की पराकाष्ठा की कल्पना इसी बात से की जाती है कि उसने भारत की एक जगह का नाम हरिद्रोही रख दिया था यानि जो भगवान विष्णु के खिलाफ हो. क्योंकि उस जगह पर सबसे ज्यादा हरिभक्त रहते थे. हिरयणकश्यप चाहता था कि पूरे राज्य से हरिभक्तों का वध कर दिया जाए या फिर उन्हें नास्तिक बना दिया जाए.
आज हरिद्रोही बन चुका है हरदोई
उत्तरप्रदेश में आज जिस जगह को हरदोई कहा जाता है उसे ही हरिद्रोही बना दिया गया था. बदलते समय के साथ हरिद्रोही का नाम हरदोई रख दिया गया.
इस वजह से चुना उस जगह को
ऐसा माना जाता है कि हिरयणकश्यप की दूसरी पत्नी विष्णुभक्त थी. वो हरदोई की ही रहने वाली थी. अपनी पहली संतान के जन्म के समय वो अपने मायके गई थी. वहां पर हरिनाम का ऐसा बोलबाला था कि उसका पुत्र प्रह्लाद भी विष्णुभक्त बन गया. इस वजह से हिरयणकश्यप चाहता था कि फिर से कोई उस जगह पर हरिभक्त जन्म न ले…Next
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