धर्म क्या है? अगर कोई आपसे ये सवाल पूछे तो आप क्या जवाब देंगे. जाहिर है कुछ लोग कहेंगे कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन. बेशक, ज्यादातर लोगों के लिए धर्म की यही परिभाषा है. जबकि धर्म का अर्थ पूजा-पाठ, नमाज, मंदिर-मस्जिद और गुरूद्वारों से हटकर है. बौद्धिक स्तर पर बात की जाए तो धर्म के मायने वर्तमान परिभाषा से बिल्कुल परे है. चलिए, ये तो बात हुई धर्म की परिभाषा की, लेकिन पुराणों के आधार पर धर्म की उत्पत्ति की बात की जाए तो ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक पौराणिक कहानी मिलती है.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सूत के बेटे उग्रश्रवा बताते हैं कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के लिए भगवान विष्णु से सहायता मांगी थी. ब्रह्मा की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने अपने सीने पर हाथ रखकर मंत्रोच्चारण किया. कुछ ही समय बाद उनके सीने से एक चमकता हुआ आदमी अवतरित हुआ. उसे संसार की सभी बातों के बारे में जानकारी थी. वो किसी अज्ञानी को भी ज्ञान के मार्ग पर मोड़ सकता था.
स्वभाव से बहुत निर्मल और शांत था. उसके चमकते मुख को देखकर किसी का भी क्रोध शांत हो जाता था. भगवान विष्णु और अन्य देवताओं ने उस व्यक्ति का नाम ‘धर्म’ रखा. जिसका मुख्य काम पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखना था. जब भी कोई व्यक्ति अपने धर्म से भटक जाता, तो धर्म उसके मन में समाकर उसे सत्य और ज्ञान से भर देता. पुराणों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि धर्म युगों-युगों तक मनुष्य जाति के कल्याण के लिए धरती पर भेज दिया गया.
यहां गौर करने की बात ये है कि धर्म का स्वभाव शांत है यानि अगर कोई व्यक्ति धर्म की आड़ लेकर उपद्रव करता है, तो उसे धर्म नहीं माना जा सकता. धर्म का अर्थ ही शांति, प्रेम और मित्रता का भाव है…Next
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