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गंगा में क्यों करते हैं अस्थि विसर्जन, जानें क्या है पौराणिक महत्व

आपने पौराणिक कहानियों में सुना होगा कि किसी व्यक्ति के मरने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए उसका अस्थि विसर्जन नदी में करना जरूरी होता है। माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति के मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता तो उसकी आत्मा युगों-युगों तक धरती पर भटकती रहती है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal18 Sep, 2019

 

 

अंतिम संस्कार का सबसे आखिरी पड़ाव है अस्थि विसर्जन, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अस्थि विसर्जन गंगा में ही क्यों किया जाता है? एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है। हिन्दू धर्म में गंगा का स्थान इसलिए भी सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि देवी गंगा भगवान शिव की जटाओं में वास करते हुए धरती पर अवतरित हुई थी। मरने के बाद शरीर को अग्नि के हवाले किया जाता है। जिसके बाद शरीर राख हो जाता है। माना जाता है अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति की आत्मा नए शरीर को आसानी से ग्रहण कर लेती है।

 

asthi visarjan

 

पापमुक्त जीवन की कामना के लिए

हिन्दू धर्म के कुछ महान ग्रंथों में भी अस्थि विसर्जन के आख्यान पाए गए हैं। शंख स्मृति एवं कर्म पुराण में गंगा नदी में ही क्यों अस्थि विसर्जन करना शुभ है, इसके तथ्य पाए गए हैं। इस नदी की पवित्रता को दर्शाते हुए ही वर्षों से अस्थियों को इसमें विसर्जित करने की महत्ता बनी हुई है। इसके अलावा सिख धर्म में भी अस्थि विसर्जन किया जाता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वह गंगा नदी में ही हो बल्कि इसके लिए किसी भी पवित्र नदी का चुनाव किया जा सकता है, लेकिन शास्त्रों में खासतौर पर अस्थि विसर्जन को गंगा नदी से जोड़कर ही देखा गया है।

 

 

वर्षों तक गंगा में रहती है अस्थियां

हिन्दू धार्मिक स्थल जैसे कि हरिद्वार, प्रयाग आदि में गंगा का वास है, जहां एक बड़े स्तर पर विधि-विधान से अस्थि विसर्जन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मनुष्य की अस्थियां वर्षों तक गंगा नदी में ही रहती हैं। गंगा नदी धीरे-धीरे उन अस्थियों के माध्यम से इंसान के पाप को खत्म करती है और उससे जुड़ी आत्मा के लिए नया मार्ग खोलती है।

 

वैज्ञानिक आधार

इंसान की अस्थियों एवं नदी को वैज्ञानिक रूप से भी जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है नदी में प्रवाहित मनुष्य की अस्थियां समय-समय पर अपना आकार बदलती रहती हैं, जो कहीं ना कहीं उस नदी से जुड़े स्थान को उपजाऊ बनाती हैं। …Next

 

 

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