ऐसा क्या हुआ कि पंडित यहाँ पूजा कराने से कतराते थे?
बात उस समय की है जब संपूर्ण बंगाल में कुलीन प्रथा जोरों पर थी. जाति-पाति पूरे की पकड़ समाज पर बड़ी गहरी थी. उस समय एक शूद्र जमींदार की विधवा पत्नी रासमणि एक भव्य मंदिर का निर्माण कराना चाहती थी. जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उनके पास धन-सम्पति की कोई कमी नहीं थी. इसलिये जल्दी ही उनकी इच्छा ने वास्तविक आकार ले लिया. उनके पसंदीदा स्थान पर मंदिर का निर्माण हो गया. उस मंदिर का नाम रखा गया दक्षिणेश्वर काली मंदिर.
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मान्यता है कि रासमणि को एक रात स्वप्न में मां काली ने दर्शन दिया और स्वयं माता ने उन्हें उस स्थान का परिचय करवाया जहां उस मंदिर का निर्माण होना था.
रासमणि के द्वारा मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो करीब 8 वर्षों तक चला. उस जमाने में दक्षिणेश्वर मंदिर को बनवाने में 9 लाख रुपए खर्च हुए थे. उस स्थान पर मंदिर तो बन गयी लेकिन एक नयी समस्या ने सुरसा की तरह मुँह फैला दिया. कोई पुजारी इस मंदिर में पूजा करवाने को तैयार नहीं हुआ. एक शूद्र स्त्री द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया जाना तत्कालीन समाज के मानदंडों के विरूद्ध था.
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रामकृष्ण ने काली माता की आराधना करते हुए ही परमहंस की अवस्था प्राप्त की थी. रामकृष्ण खाना पीना छोड़कर आठों पहर माता काली को निहारते रहते थे. माँ काली के दर्शन न पाकर दुखी रामकृष्ण अपना सिर काटने के लिए तैयार हो गए पर स्वयं मां काली ने उनका हाथ पकड़ उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.Next…
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