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साधु-संत इसलिए धारण करते हैं इन 5 रंगों के वस्त्र, ये है रहस्य

रंगों में भी एक अर्थ छुपा होता है जिनसे हमारा जीवन प्रभावित होता है. जैसे जब हम किसी उत्सव में जाते हैं तो गहरे रंग के कपड़े पहनकर जाते हैं जबकि किसी शोक सभा या दुख की घड़ी में हल्के या सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं. इसी तरह हम अपने आसपास ऐसे कई साधु-संत भी देखते हैं जो एक विशेष रंग के कपड़े ही धारण करते हैं. क्या आप जानते हैं विभिन्न रंगों के वस्त्र धारण करने के पीछे क्या रहस्य होता है. आइए, हम आपको बताते हैं.
सफेद रंग : संन्यास की शुरुआत में पहली और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ब्रह्मचर्य और पवित्रता की दीक्षा. इस प्रक्रिया से गुजरने वाले को सफेद वस्त्र प्रदान किए जाते हैं. सफेद अर्थात बेदाग रंग. साधक को ध्यान रखना पड़ता है कि उस पर कहीं कोई दाग अथवा कलंक न लगने पाए.
पीला रंग : पीला रंग दया, क्षमा और करुणा का प्रतीक है. पृथ्वी का रंग भी पीला है. पृथ्वी और संत को सबसे अधिक सहनशील माना गया है. वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है कि पृथ्वी का रंग पीला है. इस अवधि में भिक्षाटन आदि के दौरान संन्यासी को लोगों की उपेक्षाएं और ताने भी सहने पड़ते हैं, लेकिन वह सबको क्षमा कर देता है.
लाल रंग : इन उपेक्षाओं को सहने के बाद गुरु संन्यासी को साधु बनाता है. अर्थात ऐसा माना जाता है कि वह साधना के योग्य हो गया है. तब उसे लाल वस्त्र प्रदान किए जाते हैं. लाल रंग क्रोध, खतरे और ‍अग्नि का प्रतीक है. लाल रंग का अर्थ है परिचित और अन्य लोग उस संन्यासी से दूर रहें. यदि उसकी साधना भंग होगी तो उसे क्रोध आएगा और वह चिमटा और त्रिशूल लेकर दौड़ पड़ेगा.
काला रंग : साधना पूर्ण होने पर संन्यासी काले वस्त्र धारण करता है. काला रंग सभी रंगों का मिश्रण है, इसमें कुछ और नहीं मिलाया जा सकता. यह पूर्णता और परम पवित्रता का प्रतीक है. दैवत्व की पराकाष्ठा का भी रंग है यह. अज्ञानता और मूर्खतावश लोगों ने इसे भय और अपशकुन का रंग मान लिया. दरअसल, काला रंग संतत्व, श्रेष्ठता और पूर्णत्व का रंग है.
भगवा रंग : शास्त्रों का मत है कि भगवा पहनने के बाद लकड़ी की औरत का भी स्पर्श नहीं होना चाहिए. भगवा पहनकर आप समाज में नहीं जा सकते. भगवा वैराग्य की पराकाष्ठा है, चरम है. वर्तमान में भगवा की गरिमा का ध्यान नहीं रखा जा रहा है.

रंगों में भी एक अर्थ छुपा होता है जिनसे हमारा जीवन प्रभावित होता है. जैसे जब हम किसी उत्सव में जाते हैं तो गहरे रंग के कपड़े पहनकर जाते हैं जबकि किसी शोक सभा या दुख की घड़ी में हल्के या सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं. इसी तरह हम अपने आसपास ऐसे कई साधु-संत भी देखते हैं जो एक विशेष रंग के कपड़े ही धारण करते हैं. क्या आप जानते हैं कि विभिन्न रंगों के वस्त्र धारण करने के पीछे क्या रहस्य होता है. आइए हम आपको बताते हैं.


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सफेद रंग : संन्यास की शुरुआत में पहली और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ब्रह्मचर्य और पवित्रता की दीक्षा. इस प्रक्रिया से गुजरने वाले को सफेद वस्त्र प्रदान किए जाते हैं. सफेद अर्थात बेदाग रंग. साधक को ध्यान रखना पड़ता है कि उस पर कहीं कोई दाग अथवा कलंक न लगने पाए.


पीला रंग : पीला रंग दया, क्षमा और करुणा का प्रतीक है. पृथ्वी का रंग भी पीला है. पृथ्वी और संत को सबसे अधिक सहनशील माना गया है. वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है कि पृथ्वी का रंग पीला है. इस अवधि में भिक्षाटन आदि के दौरान संन्यासी को लोगों की उपेक्षाएं और ताने भी सहने पड़ते हैं. लेकिन वह सबको क्षमा कर देता है.


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लाल रंग : इन उपेक्षाओं को सहने के बाद गुरु संन्यासी को साधु बनाता है. अर्थात ऐसा माना जाता है कि वह साधना के योग्य हो गया है. तब उसे लाल वस्त्र प्रदान किए जाते हैं. लाल रंग क्रोध, खतरे और ‍अग्नि का प्रतीक है. लाल रंग का अर्थ है परिचित और अन्य लोग उस संन्यासी से दूर रहें. यदि उसकी साधना भंग होगी तो उसे क्रोध आएगा और वह चिमटा और त्रिशूल लेकर दौड़ पड़ेगा.


काला रंग : साधना पूर्ण होने पर संन्यासी काले वस्त्र धारण करता है. काला रंग सभी रंगों का मिश्रण है. इसमें कुछ और नहीं मिलाया जा सकता है. यह पूर्णता और परम पवित्रता का प्रतीक है. दैवत्व की पराकाष्ठा का भी रंग है यह. अज्ञानता और मूर्खतावश लोगों ने इसे भय और अपशगुन का रंग मान लिया. दरअसल, काला रंग संतत्व, श्रेष्ठता और पूर्णत्व का रंग है.


भगवा रंग : शास्त्रों का मत है कि भगवा पहनने के बाद लकड़ी की औरत का भी स्पर्श नहीं होना चाहिए. भगवा पहनकर आप समाज में नहीं जा सकते. भगवा वैराग्य की पराकाष्ठा और चरम है. वर्तमान में भगवा की गरिमा का ध्यान नहीं रखा जा रहा है…Next


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