सृष्टि की रचना में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भूमिका के बारे में सभी जानते हैं। ब्रह्मा को संसार के रचयिता, विष्णु को पालनहर्ता और महेश यानि शिव को संसार के विनाशक के रूप में जाना जाता है। यदि बात करें शिव की, तो विनाशक होने का अर्थ संसार को समाप्त करने से नहीं बल्कि संसार के सृजन से है। यानि धरती पर जब-जब पाप की वृद्धि होती है, भगवान शिव धरती के सभी जीवों का विनाश करके एक बार फिर से नए संसार के सृजन का मार्ग खोल देते हैं।
वहीं बात करें भगवान शिव के भक्तों की तो, शिव के भक्तजन इस संसार की मोह-माया से विरक्त होते हैं। ध्यान देने की बात ये हैं कि वे शिव के द्वारा धारण किए जाने वाले हर प्रतीक के प्रति भक्ति का भाव रखते हैं। दूसरी ओर शिव के द्वारा प्रयोग किए जाने वाले हर प्रतीक के पीछे एक रहस्यमय कहानी छुपी हुई है। आपने भी ध्यान दिया होगा कि शिव की पूजा में राख या भस्म का प्रयोग भी किया जाता है। साथ ही शिवभक्त भी राख को अपने माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं। लेकिन क्या आप इसके पीछे के महत्व को जानते हैं। वास्तव में ‘शिवपुराण’ में इस सम्बध में एक कथा मिलती है।
जिसके अनुसार जब सती ने स्वंय को अग्नि में समर्पित कर दिया था, तो उनकी मृत्यु का संदेश पाकर भगवान शिव क्रोध और शोक में अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। वे अपनी पत्नी के मृत शव को लेकर इधर-उधर घूमने लगे, कभी आकाश में, तो कभी धरती पर। जब श्रीहरि ने शिवजी के इस दुख एवं उत्तेजित व्यवहार को देखा तो उन्होंने शीघ्र से शीघ्र कोई हल निकालने की कोशिश की। अंतत: उन्होंने भगवान शिव की पत्नी के मृत शरीर का स्पर्श कर इस शरीर को भस्म में बदल दिया। हाथों में केवल पत्नी की भस्म को देखकर शिवजी और भी चितिंत हो गए, उन्हें लगा वे अपनी पत्नी को हमेशा के लिए खो चुके हैं।
अपनी पत्नी से अलग होने के दुख को शिवजी सहन नहीं पर पा रहे थे, लेकिन उनके हाथ में उस समय भस्म के अलावा और कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने उस भस्म को अपनी पत्नी की अंतिम निशानी मानते हुए अपने तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें। दूसरी ओर एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने साधुओं को संसार और जीवन का वास्तविक अर्थ बताया था जिसके अनुसार राख या भस्म ही इस संसार का अंतिम सत्य है। सभी तरह की मोह-माया और शारीरिक आर्कषण से ऊपर उठकर ही मोक्ष को पाया जा सकता है…Next
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