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द्रौपदी के ठुकराए जाने के बाद ‘कर्ण’ ने क्यों की थी दो शादी

कुंती-पुत्र कर्ण केवल एक महारथी, कुशल सेनापति ही नहीं बल्कि एक सच्चा मित्र और दानवीर भी था. लेकिन महाभारत के इस पात्र के बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण मानव मस्तिष्क में उनकी जो छवि बनी वो अधूरी है जिसमें उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व उभर कर सामने नहीं आ पाया है. कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष में होने के कारण भी उनके चरित्र को वो स्थान नहीं मिल पाया जो उन्हें मिलनी चाहिए थी. कर्ण के व्यक्तित्व को जानने के लिए उनसे जुड़ी महाभारत के उन अंशों को जानना जरूरी है जो अधिकांश लोगों के संज्ञान में नहीं आई है. पढ़िए महारथी कर्ण के व्यक्तित्व से जुड़ी महाभारत में वर्णित उनकी निजी जीवन की वो बातें जो बहुत कम कही-सुनी गई है……


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धृतराष्ट्र के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन के रथ का सारथी सत्यसेन हुआ करता था जो दुर्योधन का विश्वासपात्र भी था. कर्ण के दत्तक पिता अधिरथ चाहते थे कि कर्ण सत्यसेन की बहन से शादी कर ले. सत्यसेन की बहन व्रूशाली भी साधारण नहीं बल्कि बेहद चरित्रवान और इसलिए कर्ण की मृत्यु होने पर उसने भी उसकी चिता में ही समाधि ले ली.


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कर्ण की दूसरी पत्नी सुप्रिया थी. उसे दुर्योधन की पत्नी भानुमती की सहेली के रूप में जाना जाता है. महाभारत में इन दोनों पात्रों के बारे में अधिक वर्णन नहीं मिलता. स्त्री पर्व की जलप्रदानिका पर्व में यह वर्णन है कि जब गांधारी युद्ध के बाद कुरूक्षेत्र में पहुँची तो उसने चार श्लोक पढ़े. इन श्लोकों में कर्ण की पत्नी के नाम का ज़िक्र था लेकिन उसका नाम नहीं था. उन्हीं श्लोकों में सुप्रिया से उत्पन्न उनके दोनों पुत्रों वृशषेण और सुषेण के नामों का भी ज़िक्र है. इसके अलावा भी कई कथाओं में कर्ण की पत्नी के नामों में विभिन्नताएँ हैं.



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कर्ण की पत्नी व्रूशाली के बारे में एक कथा यह भी प्रचलित है कि वो एक बार द्रौपदी से मिलने आई थी. और उसने उससे कुरू राजाओं के राजमहल को छोड़ उसके भाई के पास चले जाने की विनती की थी. लेकिन द्रौपदी ने वहीं रहने का फैसला किया. इसके कुछ समय बाद ही युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी को हार बैठे और भरी सभा में उसका चीर-हरण हुआ.


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कुछ कथाओं में यह मत भी प्रचलित है कि द्रौपदी के मन में कर्ण के लिए प्रेम था. अपने स्वयंवर में कर्ण के आने से वो प्रसन्न हुई थी. लेकिन जब ‘सूत-पुत्र’ कहकर भरी सभा में अपना कौशल दिखाने से कर्ण को रोक दिया गया तो द्रौपदी को मजबूरी में अर्जुन से विवाह करना पड़ा. इसके बाद जब वो पांडवों के साथ घर आई तो उसे पाँचों पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा. Next….

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