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शुभ कार्यों में कलाई पर इसलिए बांधा जाता है कलावा, जानें इसके वैज्ञानिक कारण

किसी भी शुभ कार्य से पहले या कोई भी पूजा करने से पहले तिलक किया जाता है और हाथों पर रक्षासूत्र बांधते हैं फिर पूजा शुरू की जाती है. धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ या कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानि मौली (कलावा) बांधने की परंपरा है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मौली यानि कलावा क्यों बांधते हैं? आखिर इसकी वजह क्या है? गौरतलब है कि कलावा बांधने की परंपरा तब से चली आ रही है, जब से महान, दानवीरों में अग्रणी महाराज बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था. इसे रक्षा कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है. कलावा यानी रक्षा सूत्र बांधने के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों महत्व है.


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वैदिक परंपरा का हिस्‍सा

बताया जाता है कि इंद्र जब वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे तब इंद्राणी शची ने इंद्र की दाहिनी भुजा पर रक्षा-कवच के रूप में कलावा बांध दिया था और इंद्र इस युद्ध में विजयी हुए. उसके बाद से ये रक्षासूत्र बांधा जाता है. वहीं इसके अनुष्ठान की बाधांए दूर हो जाती है. शास्त्रों का ऐसा मत है कि कलावा बांधने से त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है. ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति विष्णु की अनुकंपा से रक्षा बल मिलता है और शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं.


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रक्षा सूत्र का महत्व

ऐसा माना जाता है कि असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था. इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था.


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मौली का अर्थ

‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’.  मौली का तात्पर्य सिर से भी है. मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं. इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है. शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है.


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किस हाथ में बांधी जाती है मौली

पुरुषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में और विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में रक्षासूत्र बांधा जाता है. जिस हाथ में कलावा या मौली बांधें उसकी मुट्ठी बंधी हो एंव दूसरा हाथ सिर पर हो. इस पुण्य कार्य के लिए व्रतशील बनकर उत्तरदायित्व स्वीकार करने का भाव रखा जाए. पूजा करते समय नवीन वस्त्रों के धारण किए होने पर मौली हाथ में धारण अवश्य करना चाहिए. धर्म के प्रति आस्था रखें, मंगलवार या शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मोली धारण करें, संकटों के समय भी रक्षासूत्र हमारी रक्षा करते हैं…Next


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