
Posted On: 13 Aug, 2019 Spiritual में
महाभारत न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म के बीच का युद्ध था लेकिन एक युद्ध इसमें शामिल होने वाले हर योद्धा के मन में भी चल रहा था। इस युद्ध में शामिल होने वाले ऐसे कई योद्धा थे, जो सही-गलत के बीच का अंतर जानते हुए भी अधर्म के साथ खड़े थे। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था, राजधर्म का पालन करना। जैसे भीष्म पितामहा सभी योद्धाओं में से सबसे ज्ञानी और अनुभवी थे, इस नाते वो सबकुछ जानते थे लेकिन सबकुछ जानते हुए भी उन्हें कौरवों का साथ देना पड़ा।
इसी तरह विदुर भी किसी के पक्ष में युद्ध का हिस्सा नहीं बने थे लेकिन एक बात की उन्हें आत्मग्लानि महसूस होती थी कि अनुभवी और वरिष्ठ होने पर भी वो भाईयों के बीच युद्ध को रोक पाने में सफल नहीं हो सके।
विदुर की अंतिम इच्छा
युद्ध के समय वो श्रीकृष्ण से मिले और मन की गांठे खोलते हुए अपनी अंतिम इच्छा उन्हें बताई। उन्होंने कहा ‘प्रभु मैं धरती पर इनका प्रलयकारी युद्ध देखकर बहुत आत्मग्लानिता का अनुभव कर रहा हूं, मेरी मृत्यु के पश्चात मैं अपने मृत शरीर का एक अंश भी इस धरती छोड़ना नहीं चाहता, इसलिए मेरी अंतिम इच्छा है कि आप मेरी शरीर को न ही जल में प्रवाहित करें और न ही दफनाएं या जलाएं बल्कि मेरे शव को आप सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दें।’ श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा स्वीकार कर ली।
प्राण छोड़कर युधिष्ठिर में समाहित हुए विदुर
महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर एक दिन पांचों पांडव विदुर से मिलने वन में आए। युधिष्ठिर विदुर जी से मिलने के लिए उनके पास आये युधिष्ठिर को देखते ही विदुर जी के प्राण शरीर छोडकर युधिष्ठिर में समाहित हो गये। युधिष्ठिर को कुछ भी समझ नहीं आया, उन्होंने श्रीकृष्ण को याद किया।युधिष्ठिर को दुविधा में देखकर श्रीकृष्ण प्रकट हुए और युधिष्ठिर से बोले ‘विदुर, धर्मराज के अवतार थे और तुम स्वयं धर्मराज हो इसलिए विदुर के प्राण तुममें समाहित हो गये, लेकिन अब मैं विदुर को दिया हुआ वरदान उनकी अंतिम इच्छा पूरी करूंगा।
युधिष्ठिर बोले प्रभु पहले विदुर काका का अंतिम संस्कार आप अपने हाथों से कर दो। श्री कृष्ण बोले इनकी अंतिम इच्छा थी कि मेरे मरने के बाद मेरे शव को न जलाना, न दफनाना और न जल में प्रवाहित करना। मेरे शव को सुदर्शन चक्र का रूप प्रदान करके धरा पे स्थापित कर देना। ‘हे युधिष्ठिर, आज मैं उनकी अंतिम इच्छा पूरी करके विदुर को सुदर्शन का रूप दे कर यहीं स्थापित करूंगा’। इस तरह श्री कृष्ण ने विदुर को सुदर्शन का रूप देकर वहीं स्थापित कर दिया…Next
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