हिंदू धार्मिक ग्रंथों में प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश को ही माना गया है। प्रत्येक चंद्र मास की दो तिथियां उनकी पूजा के लिए समर्पित हैं। खासकर आषाण माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का खास महत्व है। इस दिन भगवान विनायक की पूजा करने से शरीर में आई अपंगता और घर में छाई दरद्रिता दूर हो जाती है।
पूजा का समय और चतुर्थी का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार 24 जूने को आषाण माह के शुुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इस दिन गणेश की पूजा का विधान है। इसे विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। पूजा का मुहूर्त सुबह 10:14 से शुरू होकर अगले दिन यानी 25 जून को सुबह 08:47 बजे पारण के साथ समाप्त होगा। चतुर्थी के दिन गणेश भगवान की पूजा का विधान कैसे शुरू हुआ इसको लेकर एक प्रचलित कथा है।
पार्वती और भोलेनाथ के बीच चौपड़ का खेल
कथा के अनुसार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने भोलेनाथ से चौपड़ खेलने की इच्छा जताई तो भोलेनाथ मान गए। खेल शुरू होने से पहले निर्णायक के तौर तिनकों से एक बालक का पुतला बनाया और उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसे निर्णायक बना दिया। खेल शुरू और पहली बार में माता पार्वती ने भोलेनाथ को हरा दिया।
हारे भोलेनाथ को विजेता बताने पर निर्णायक को श्राप
चौपड़ का खेल कुल तीन बार खेला गया और माता पार्वती तीनों बार विजयी हुईं। खेल की समाप्ति पर निर्णायक बने बालक से विजेता की घोषणा करने को कहा गया तो उसने भोलेनाथ को विजयी घोषित कर दिया। इससे पार्वती क्रोधित हो गईं और बालक को अपंग होने और कीचड़ रहने का श्राप दे दिया। बालक ने क्षमा मांगी और अपनी भूल स्वीकार करते हुए श्राप से मुक्ति का मार्ग पूछा।
नागकन्याओं ने बताई श्राप से मुक्ति की विधि
कुछ देर जब पार्वती का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने बालक से कहा कि कैलाश पर्वत पर नाग कन्याएं गणेश पूजन के लिए आती हैं। वह ही तुम्हें मुक्ति का मार्ग बताएंगी। बालक ने नागकन्याओं का इंतजार किया और उनसे गणेश पूजन की विधि पूछी। नाग कन्याओं ने चतुर्थी तिथि को विधिवत व्रत रखने के साथ गणेश पूजन की विधि समझा दी।
चतुर्थी पर गणेश पूजन से मिट गए कष्ट
बालक ने 21 दिन लगातार भगवान गणेश की आराधना की तो वह श्राप मुक्त हो गया। भगवान गणेश ने उसे सभी कष्टों से मुक्त करते हुए कैलाश जाने और माता पावर्ती और भोलेनाथ के दर्शन का आदेश दिया। बालक ने ऐसा ही किया और उसके कष्ट समेत अपंगता और दरिद्रता खत्म हो गई। तब से ही प्रति माह चतुर्थी तिथि गणेश की पूजा का विधान है।
पूजा विधि और पालन का तरीका
विनायक चतुर्थी के दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश की सोन, चांदी, पीतल, तांबा या मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें। पूजा के दौरान गणेश को सिंदूर लगाएं और 21 दुर्वा अर्पित करें। लड्डुओं का भोग लगाकर गणेश मंंत्र का जाप करते हुए आरती करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को प्रसाद दें और भोजन कराएं। पूजा विधि का पालन करने से किसी भी प्रकार की अपंगता, दरिद्रता और संकट से मुक्ति मिल जाती है।…Next
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