हिन्दू धर्म में सप्ताह के हर दिन किसी एक भगवान की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है. मान्यता है कि दिन के अनुसार भगवान की आराधना तथा पूजा से प्रभु जल्द ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं. धर्म के अनुसार बुधवार को भगवान विट्ठल की पूजा की जाती है. भगवान विट्ठल को कृष्ण का अवतार कहा जाता है. यही करण है कि भगवान विट्ठल के साथ देवी रुक्मिणी की मूर्ति भी होती है. यूं तो भगवान विट्ठल की पूजा-अर्चना सालों भर होती है परन्तु मुख्य रूप से आषाढ़ महीने से यहाँ पूजा-अर्चना बढ़ जाती है.
भारत के कई भागों में भगवान विट्ठल के मंदिरों को देखा जा सकता है. इन मंदिरों में भगवान विट्ठल की प्रतिमा एक काले से नौजवान के रूप में है. जिनके दोनों हाथ उनके कमर पर होते हैं. भगवान विट्ठल के मंदिरों की संख्या दक्षिण भारत में अधिक हैं. स्वाभाविक है कि भगवान विट्ठल की पूजा-अर्चना इन स्थानों में बहुत ही धूमधाम से की जाती है.
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हिंदूओं के इस विशेष स्थल पर प्रत्येक साल चार त्यौहार धूमधाम से मनाए जाते हैं. ये सभी त्यौहार यात्राओं के रूप में मनाए जाते हैं. इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में एकत्रित होते हैं जबकि इसके बाद क्रमशः कार्तिक, माघ और श्रावण महीने की यात्राओं में सबसे ज्यादा तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं. ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं. यूं तो भगवान विट्ठल का मंदिर पुरे भारतवर्ष में है पर इन मंदिरों में से सबसे अधिक लोकप्रिय महाराष्ट्र के पंढरपुर तीर्थस्थान है. यहां हर सालों आषाढ़ के महीने में करीब 5 लाख से ज्यादा हिंदू श्रद्धालु प्रसिद्ध पंढरपुर यात्रा में भाग लेने पहुंचते हैं. भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर पैदल चलकर लोग यहां इकट्ठा होते हैं. इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पूना तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं.
भगवान विट्ठल को कई नामों से जाना जाता है. जैसे विट्ठाला, पांडुरंगा, पंधारिनाथ, हरी, नारायण जैसे और भी नाम भगवान विट्ठल के है. ऐसी बहुत सी कहानियाँ और मान्यताएं हैं इन नामों के पीछे. पंढरपुर को पंढारी के नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान विट्ठल का विश्व विख्यात मंदिर है. भगवान विट्ठल को हिंदू श्री कृष्ण का एक रूप मानते हैं. भगवान विट्ठल विष्णु अवतार कहे जाते हैं. इस मंदिर में देवी रुक्मिणी को भगवान विट्ठल के साथ स्थापित किया गया है. प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं. इस अवसर पर राज्यभर से लोग पैदल ही चलकर मंदिर नगरी पहुंचते हैं.
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लगभग 1000 साल पुरानी पालखी परंपरा की शुरुआत महाराष्ट्र के कुछ प्रसिद्ध संतों ने की थी. उनके अनुयायियों को वारकारी कहा जाता है जिन्होंने इस प्रथा को जीवित रखा. पालखी के बाद डिंडी होता है. वारकारियों का एक सुसंगठित दल इस दौरान नृत्य, कीर्तन के माध्यम से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम की कीर्ति का बखान करता है. यह कीर्तिन अलंडि से देहु होते हुए तीर्थनगरी पंढरपुर तक चलता रहता है. यह यात्रा जून के महीने में शुरू होकर 22 दिनों तक चलता है. Next….
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