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जानें, नवरात्र में क्‍यों की जाती है शक्ति की साधना? ये हैं मान्यताएं

नवरात्र शक्ति महापर्व पूरे भारतवर्ष में बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में शक्ति का महत्व स्वयं सिद्ध है और उसकी उपासना के रूप अलग-अलग हैं। समस्त शक्तियों का केन्द्र एकमात्र परमात्मा है परन्तु वह भी अपनी शक्ति के बिना अधूरा है। ऐसे में चलिए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है ये पर्व।

Shilpi Singh
Shilpi Singh6 Oct, 2018

 

 

क्‍या है नवरात्र का महत्‍व 
भारत में शक्ति की पूजा के लिए नवरात्र का अत्यधिक महत्व है। नवरात्र में पर शक्ति की साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं। नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ. लेकिन ज्‍यादातर इन्‍हें चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है।

 

 

ये है पौरोणिक कथाएं

कहा जाता है कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर दैत्यों ने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और वर मांगा कि उन्हें कोई पुरुष, जानवर और उनके शस्त्र न मार सकें। वरदान मिलते ही असुर अत्याचार करने लगे, तब देवताओं की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने वरदान का भेद बताते हुए बताया कि असुरों का नाश अब स्त्री शक्ति ही कर सकती है। ब्रह्माजी के पहने पर देवों ने 9 दिनों तक मां पार्वती को प्रसन्न किया और उनसे असुरों के संहार का वचन लिया। असुरों के संहार के लिए देवी ने रौद्र रूप धारण किया था इसीलिए नवरात्र शक्ति-पर्व के रूप में मनाया जाता है।

 

 

क्‍यों मनाई जाती है नवरात्रि ये है वैज्ञानिक महत्व
नवरात्र के कई सारे वैज्ञानिक महत्व भी हैं, माना जाता है कि जब नवरात्रे आते हैं ऐसे में मौसम में अक्सर बदलाव देखने को मिलता है और इस दौरान कई सारी बीमारी भी होता है। ऐसे में रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है।

 

 

देवी के नौ रूपों की महिमा 
शक्ति साधना में मुख्य रूप से नौ देवियों की साधना, तीन महादेवियों की साधना और दश महाविद्या की साधना आदि का विशेष महत्व है। नवरात्र में दशमहाविद्या साधना से देवियों को प्रसन्न किया जाता है. दशमहाविद्या की देवियों में क्रमशः दशरूप- काली, तारा, छिन्नमास्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगला मुखी (पीताम्बरा), मातंगी, कमला हैं। प्रत्येक विद्या अलग-अलग फल देने वाली और सिद्धि प्रदायक है। दशमहाविद्याओं की प्रमुख देवी व एक महाविद्या महाकाली हैं। दशमहाविद्या की साधना में बीज मंत्रें का विशेष महत्व है। दक्षिण में दशमहाविद्याओं के मंदिर भी है और वहां इनकी पूजा का आयोजन भी किया जाता है।…Next

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