जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सृष्टि के उद्धार के लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। जिसमें से बहुत सारे रत्नों की उत्पत्ति हुई थी। कहा जाता हैं कि मंदार पर्वत को शेषनाग से बांधकर समुद्र का मंथन किया गया था और उस मंथन में समुद्र से ऐसी कई चीजें प्राप्त हुई थी, जो बहुत अमूल्य थी। मंथन से प्राप्त चीजों में से एक चीज अमृत भी थी, जिसे लेकर देवताओं और असुरों में देवासुर युद्ध हुआ था और भगवान विष्णु की सहायता से देवता इस युद्ध में अमृत को पाकर विजय प्राप्त कर पाए थे।
मान्यता हैं कि समुद्र मंथन से अमृत के अलावा धन्वन्तरी, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, दिव्य शंख, वारुणी या मदिरा, पारिजात वृक्ष, चंद्रमा, अप्सराएं, उचौ:श्राव अश्व, हलाहल या विष और कामधेनु गाय भी प्राप्त हुई थी। लेकिन अमृतपान के लिए देवता और असुरों में युद्ध हुआ था। भगवान विष्णु की मदद से देवताओं ने यह युद्ध जीत लिया और अंततः देवताओं को अमृत की प्राप्ति हो पाई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मंथन के द्वारा समुद्र से जिस अमृत की उत्पत्ति हुई थी। उसका निर्माण वास्तव में कैसे हुआ था।
कहा जाता है कि जिस पर्वत को बांधकर समुद्र मंथन किया गया था उस पर बहुत सारी औषधियों वाले पौधे उगे हुए थे। जब मंथन की प्रक्रिया शुरू की गई तो इससे पर्वत पर उगी हुई वनस्पतियों का रस, रिस-रिसकर समुद्र में टपकने लगा। समुद्र की गहराई में मौजूद प्राकृतिक सपंदा और कई तत्वों से क्रिया करके वनस्पतियों के रस से एक द्रव बना। जो समुद्र के भीतर रखे एक कलश में संचित होता गया। इस प्रकार अमृत का सृजन हुआ। इस अमृत के बारे में कहा जाता था कि ये इतना शुद्ध और निर्मल था कि उसकी एक बूंद मात्र से कई रोगों का विकार होता था।…Next
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