रामायण और महाभारत से जुड़े हुए ऐसे कितने ही प्रसंग है, जिसे सुनकर हम जीवन में बहुत कुछ सीख सकते हैं. इन दोनों महाकाव्यों के चरित्रों से जुड़ी हुई कई कहानियां है, जो कलियुग में भी प्रासंगिक है. श्रीराम, लक्ष्मण और सीता की जीवन यात्रा के साथ भक्त हनुमान से जुड़े कई प्रसंगों का वर्णन रामायण में किया गया है. उत्तर रामायण में ऐसी ही एक कहानी मिलती है, जिसके अनुसार एक बार भक्त हनुमान ने प्रभु श्रीराम के प्राण बचाने के लिए एक योजना बनाई थी.
यज्ञ में क्रोधित हो गए थे विश्वामित्र
अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने बड़ी सभा का आयोजन कर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, किन्नरों, यक्षों व राजाओं आदि को उसमें आमंत्रित किया. सभा में आए नारद मुनि के भड़काने पर एक राजन ने भरी सभा में ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया. ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पूर्व श्रीराम ने उस राजा को मृत्युदंड नहीं दिया तो वो राम को श्राप दे देंगे.
विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करने के लिए निकल गए श्रीराम
इस पर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया. श्रीराम के प्रण को सुनकर राजा ने भक्त हनुमान की माता अंजनी की शरण में गए. तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजा के प्राण बचाने का आदेश दिया. भक्त हनुमान ने श्रीराम की शपथ लेकर कहा कि कोई भी राजन का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा, परंतु जब राजन ने बताया कि भगवान श्रीराम ने ही उसका वध करने का प्रण किया है, तो हनुमान धर्मसंकट में पड़ गए कि राजन के प्राण कैसे बचाएं और माता का दिया वचन कैसे पूरा करें तथा भगवान श्रीराम को श्राप से कैसे बचाएं.
प्रभु श्रीराम को श्राप से बचाने के लिए बनाई योजना
धर्म संकट में फंसे हनुमानजी ने राजा को सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम का जाप करने को कहा. हनुमान खुद सूक्ष्म रूप में राजन के पीछे छिप गए. जब राजन को खोजते हुए श्रीराम सरयू तट पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि राजा राम नाम का जाप कर रहे हैं. तब प्रभु श्रीराम ने सोचा, ‘ये तो भक्त है, मैं भक्त के प्राण कैसे ले लूं.’
धर्मसंकट में पड़े श्रीराम
श्रीराम ने राज भवन लौटकर ऋषि विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही, लेकिन विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे और जिस पर श्रीराम को फिर से राजन के प्राण लेने हेतु सरयू तट पर लौटना पड़ा. अब श्रीराम के समक्ष भी धर्मसंकट खड़ा हो गया कि कैसे वो राम नाम जप रहे अपने ही भक्त का वध करें. राम सोच रहे थे कि हनुमानजी को उनके साथ होना चाहिए था, परंतु हनुमानजी तो अपने ही आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्मयुद्ध का संचालन कर रहे थे. श्रीराम ने सरयू तट से लौटकर राजन को मारने हेतु जब शक्ति बाण निकाला तब हनुमानजी के कहने पर राजन राम-राम जपने लगा. राम जानते थे राम-नाम जपने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता. वो असहाय होकर राजभवन लौट गए. विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर श्राप देने को उतारू हो गए और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा.
सफल हो गई हनुमान की योजना, बच गए प्रभु श्रीराम के प्राण
इस बार राजा हनुमान के कहने पर जय जय सियाराम जय जय हनुमान गाने लगे. इस स्थिति में कोई अस्त्र-शस्त्र इसे मार नहीं सकता. इस संकट को देखकर श्रीराम मूर्छित हो गए. तब ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में न डालें. उन्होंने कहा कि श्रीराम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते, क्योंकि जो बल राम के नाम में है और खुद राम में नहीं है. संकट बढ़ता देखकर ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया. प्राणमुक्त किए जाने के बाद ही राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए और श्रीराम के चरणों मे आ गिरे, तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि हनुमानजी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया है कि भक्ति की शक्ति सैदेव आराध्य की ताकत बनती है तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान से भी बड़ा रहता है. इस तरह भक्त हनुमान ने न केवल राजा के प्राण बचा लिए बल्कि प्रभु श्रीराम के प्राणों की भी रक्षा की…Next
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