ऋषि-मुनियों अथवा सतियों द्वारा मनुष्यों और यहाँ तक कि देवताओं को भी श्राप देने का प्रसंग लोग सुनते आ रहे हैं. ऐसी अनगिनत कहानियाँ हमारे ज़ेहन में रची-बसी है जिसे हम अक्सर सुनते-सुनाते हैं. रामायण और महाभारत भी ऐसी कई कथाओं से भरी पड़ी है. फिर चाहे वो अपने ऋषि पति द्वारा देवी अहिल्या को दिया गया श्राप हो अथवा परशुराम द्वारा महारथी कर्ण को दिया गया श्राप. हालांकि श्राप से अपनी मुक्ति के लिए श्राप देने वाले ऋषि की अनुनय-विनय की जाती थी और अनेक कथाओं में ये वर्णन भी मिलता है कि वो उन्हें माफ कर देते थे या उससे मुक्ति का कोई रास्ता बता देते थे.
ऋषि के कोप का सामना करना पड़ा और इसके परिणामस्वरूप यमराज को यमपुरी तक छोड़नी पड़ी थी. जानिए यमपुरी छोड़ने के बाद यमराज का क्या हुआ…..
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महाभारत में एक प्रसंग आता है कि प्रसिद्ध ऋषि मंदव्य को राजा ने चोरी के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया. लेकिन कई दिनों तक सूली पर लटकने के बाद भी ऋषि मंदव्य की मृत्यु नहीं हुई. इस पर राजा अचम्भित हुआ और उसने अपने निर्णय पर पुर्नविचार किया. तब राजा को यह महसूस हुआ कि भूलवश उसने गलत इंसान को आरोपी ठहराकर सजा दे दी है. राजा को अपने मूर्खतापूर्ण निर्णय पर बेहद ग्लानि हुई.
लेकिन अपनी गलती का अहसास होते ही राजा शीघ्र ऋषि के समक्ष पहुँचा और उनसे क्षमा-याचना की. इसके पश्चात ऋषि का देहावसान हो गया. अपनी मृत्यु के बाद जब मंदव्य ऋषि यमपुरी पहुंचे तो उन्होंने यमराज से पूछा, ‘उन्हें किस पाप की इतनी बड़ी सजा दी गई थी जो उन्हें चोरी के आरोप में सूली पर लटकना पड़ा?’
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यमराज ने मंदव्य ऋषि को बताया कि बारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने पतंगे की पूँछ में एक सूई चुभा दी थी. इसलिए उन्हें ऐसी सजा मिली. यमराज से यह सुन ऋषि क्रोधित हो उठे और यमराज को श्राप देते हुए उन्होंने कहा कि ‘12 वर्ष का बच्चा इतना समझदार नहीं होता, और अगर यह सिर्फ बचपन की एक भूल थी तो उसकी इतनी बड़ी सजा अन्याय है. जा तू एक अछूत व्यक्ति के घर जन्म लेगा’! मंदव्य ऋषि के इस श्राप के परिणामस्वरूप यमराज ने विदुर के रूप में धरती पर जन्म लिया था. Next…..
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