महाभारत जिसमें कई पात्रों से जुड़ी हुई कहानियां है। महाभारत के अंत के साथ ही कलयुग का आरंभ हुआ था। महाभारत में कर्ण और अर्जुन की अपनी एक अलग कहानी है। बचपन से ही कर्ण खुद को अर्जुन से बेहतर और कुशल योद्धा मानते थे, वहीं अर्जुन को अपने कुल और कौशल पर गर्व था। ऐसे में भाई होते हुए भी दोनों एक-दूसरे के दुश्मन क्यों बन गए।
कैसे शुरू हुई दुश्मनी
कर्ण को पालने वाले अधिरथ जब उन्हें धनुष की शिक्षा के लिए गुरू द्रोणाचार्य के पास ले गए तो कर्ण ने उनसे कहा कि वो अर्जुन से बेहतर धनुर्धर बनेगा और उनके प्रिय शिष्य को पराजित करके ये साबित करेगा कि वो भले ही क्षत्रिय नहीं है लेकिन एक सूतपुत्र होकर भी क्षत्रिय अर्जुन से बेहतर है लेकिन द्रोणाचार्य ने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया। अर्जुन द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य थे और वह सबसे बेहतर धनुर्धर अर्जुन को ही मानते थे। कर्ण की यह महत्वाकांक्षा इनके बीच दुश्मनी की एक बड़ी वजह थी।
जब कर्ण का हुआ था अपमान
जब कौरव और पाण्डवों ने अपनी शिक्षा समाप्त कर ली, उसके बाद उनकी क्षमता और योग्यता का प्रदर्शन चल रहा था उस दौरान वहां कर्ण का आगमन हुआ और उन्होंने एक बार फिर अर्जुन को चुनौती दी। कर्ण की चुनौती से पांडव क्रोधित हो गए और सूतपुत्र कहकर कर्ण का अपमान किया और कर्ण को प्रतियोगिता में शामिल होने से रोक दिया गया। दुर्योधन ने कर्ण को अंगराज बनाकर अपना मित्र बना लिया। कर्ण अपने अपमान से बेहद आहत था जिस वजह से वह अर्जुन से और नफरत करने लगा।
द्रौपदी से करना चाहता था विवाह
माना जाता है कि कर्ण भी द्रौपदी से विवाह करना चाहता था लकिन वह विवाह में हिस्सा इसलिए नहीं ले पाया क्योंकि वो एक सूतपुत्र था। वहीं अर्जुन ने स्वयंवर में ना केवल भाग लिया बल्कि उसे जीत भी लिया और द्रौपदी उनकी पत्नी बन गई। कहा जाता है कि जब द्युत क्रीड़ा का खेल जब चल रहा था उस दौरान द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए कर्ण ने ही कहा था। द्रौपदी का अपमान कौरव पांडवों के बीच युद्ध कारण बना वहीं कर्ण और अर्जुन की शत्रुता को और भड़काने का भी काम किया।
द्रोणाचार्य ने उड़ाया उपहास
अज्ञातवास समाप्त होने के समय जब विराट का युद्ध हुआ था, उस समय अर्जुन ने अकेले ही पूरी कौरव सेना को परास्त कर दिया था। इस घटना के बाद द्रोणाचार्य ने कई बार कर्ण का उपहास किया और यह साबित करने का प्रयास किया कि अर्जुन कर्ण से श्रेष्ठ है।…Next
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