महाभारत से जिसका तनिक भी संपर्क होगा वह इस बात को भलीभांति जानता होगा कि भीष्म ने विवाह नहीं किया था और जीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन किया, पर क्या अपने पिछले जन्म में भी भीष्म अविवाहित ही थे. धार्मिक ग्रंथों को खंगाले तो पता चलता है कि भीष्म अपने पिछले जन्म में एक वासु थे और विवाहित थे. आइए जानते हैं कि वह कौन सा शाप था जिसके कारण भीष्म को इस धरती पर मानव रूप में जन्म लेना पड़ा.
भारतीय मान्यताओं के अनुसार वासु वे देवता थे जो इंद्र के परिचर का कार्य करते थे. वासु बाद में विष्णु के परिचर बन गए थे. इंद्र की सभा में कुल आठ वासु हुआ करते थे जो अलग-अलग प्रकृति के पहलूओं का प्रतिनिधित्व करते थे. बृहदअरण्यक उपनिषद के अनुसार इन वासुओं के निम्नलिखित नाम थे- अग्नि, पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, आदित्य, द्यौस, चंद्रमास और नक्षत्र. हालांकि महाभारत में वासुओं के नाम अलग लिखे गए हैं. ये नाम हैं अनल, धार, अनिल, अह, प्रत्युष, प्रभाष, सोम और ध्रुव.
रामायण में जहां वासुओं को कश्यप ऋषि और अदिति का पुत्र बताया गया है वहीं महाभारत में वासुओं को प्रजापति का पुत्र बताया गया है. महाभारत में उल्लेखित एक घटना के अनुसार ‘पृथु’ के साथ अन्य वासु जंगल में घुमने का आनंद ले रहे थे. इस दौरान द्यौस की पत्नी ने एक सुंदर गाय देखी और अपने पति को उस गाय को चुराने के लिए राजी कर लिया. द्यौस ने पृथु और अपने अन्य भाईयों के साथ मिलकर उस गाय को चुरा लिया. दुर्भाग्य से वासुओं ने जिस गाय को चुराया था वह ऋषि वशिष्ठ की थी.
वशिष्ठ ने अपनी शक्तियों से यह मालूम कर लिया की वासुओं ने उनकी गाय चुराई है. उन्होंने सभी वासुओं को धरती पर इंसान के रूप में जन्म लेने का शाप दिया. वासुओं की क्षमा याचना पर वशिष्ठ ने उनसे वादा किया की 7 वासु एक साल के भीतर अपने शाप से मुक्ति पा लेंगे पर द्यौस को लंबे समय तक सांसारिक जीवन का कष्ट उठाना पड़ेगा.
वासुओं ने गंगा नदी को धरती पर अपनी मां बनने के लिए राजी किया. गंगा धरती पर मानव रूप में अवतीर्ण हुईं और राजा शांतनु की पत्नी बनीं. उन्होंने राजा शांतनु के समक्ष यह शर्त रखी की वे उन्हें कभी भी किसी भी बात के लिए नहीं रोकेंगे. गंगा ने लगातार अपने सात बच्चों को पैदा होते ही अपने ही पानी में डुबो दिया ताकि वे अपने शाप से मुक्त हो सकें. इस दौरान शांतनु ने गंगा का विरोध नहीं किया पर जब गंगा ने अपने आठवें बच्चे को भी डुबोना चाहा तो शांतनु ने उनका विरोध किया. इसके बाद गंगा ने शांतनु को छोड़ दिया. गंगा के आठवें पुत्र द्यौस ही थे जो जीवीत रह गए और आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए.
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यानी भीष्म पितामह एक वासु थे और चोरी के पाप की सजा भुगतने के लिए धरती पर पैदा हुए थे. भीष्म से जुड़ा महाभारत में एक भावुक क्षण तब आता है जब श्रीकृष्ण अर्जुन के असफल रहने पर स्वंय ही भीष्म को मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं. भीष्म कृष्ण के आगे हांथ जोड़कर घुटनों पर बैठ जाते हैं और उनसे पूछते हैं कि, “क्या मैने अपनी चोरी के पाप का उचित कीमत चुका दिया है?”
भीष्म अविवाहित क्यों रहे?
संभव है कि इसके पीछे निम्नलिखित कारण हों
1) वह एक वासु थे और धरती पर वे सिर्फ अपने पाप की सजा भुगतने के लिए आए थे. वे धरती पर अधिक दिन रुकने के इच्छुक नहीं थे.
2) अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के उनके लालच के कारण ही उन्हें शाप मिला था. एक बार यह सब भुगत लेने के बाद वे दुबारा पारिवारिक बंधनों में नहीं उलझना चाहते थे.
3) वे संसार में अपना अनुवांशिक अंश नहीं छोड़ना चाहते थे.
4) वे इस संसार में अपने कर्मों के चक्र को पूरा कर लेना चाहते थे और ऐसा कुछ भी शेष नहीं छोड़ना चाहते थे जो उन्हें वापस पीछे छोड़े.
महाभारत के युद्ध में आखिरकार भीष्म शिखंडी के हाथों से मरे. भीष्म का नाम शौर्य, भक्ति और बलिदान का प्रयाय है. भीष्म ने असीम प्रतिभाओं से संपन्न होने के बावजूद एक कष्टप्रद और अकेलापन भरा सांसारिक जीवन जिया. पिछले जन्म की अपनी एक लालच की सजा भुगत रहे भीष्म को इस जन्म में किसी भी प्रकार का लालच, मोह आदि अन्हें उनके भीषण प्रतिज्ञाओं और कर्मों से डिगा नहीं पाए.
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