महाभारत के पात्रों में गांधारी के विषय में सभी लोगों के अपने-अपने विचार है। अपने नेत्रहीन पति का साथ देने के लिए स्वयं की आंखों पर पट्टी बांधने के कारण उनकी अधिकतर लोगों द्वारा आलोचना की जाती है। साथ ही पुत्रमोह के कारण भी उनसे कई सारे अधर्म हुए लेकिन फिर भी उन्हें पतिव्रता और निष्ठावान स्त्री के रूप में माना जाता है। इसी कारण से उन्हें दिव्य शक्ति भी मिली थी। गांधारी को भगवान शिव में असीम आस्था थी और उन्हें भगवान शिव से ही यह वरदान प्राप्त था कि वह जब कभी भी किसी को भी अपनी आँखों की पट्टी उतारकर देखेंगी, उसका पूरा शरीर लोहे का हो जायेगा।
इसी वरदान के चलते गांधारी ने पुत्र मोह में आकर अपने अधर्मी पुत्र दुर्योधन की रक्षा करने के लिए महाभारत युद्ध के दौरान उसके पूरे बदन को नग्न देखने के लिए प्रथम बार अपनी पट्टी उतारी थी, जिससे कि उनके पुत्र का शरीर व्रज का बन जाए, लेकिन दुर्योधन जैसे अधर्मी को मारना बहुत जरूरी था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को गांधारी के इस वरदान से फलीभूत होने से बचाने के लिए छल का सहारा लिया। श्रीकृष्ण के कहने पर दुर्योधन अपनी मां के सामने लंगोट पहनकर गया जिससे गांधारी की दिव्य दृष्टि का प्रभाव उसकी जांघ पर नहीं पड़ा।
गांधारी ने महाभारत युद्ध के अंतिम दिन अपनी पट्टी उतारी थी। जब महाभारत का युद्ध समाप्ति पर था तब जिस समय गांधारी को अपने प्रिय पुत्र दुर्योधन के घायल होने का समाचार प्राप्त हुआ था, उस समय उन्होंने अपनी आँखों की पट्टी खोलकर देखने के लिए भागी जिससे कि दुर्योधन के शेष बचे शरीर को लोहे जैसा मजबूत बना सके लेकिन तब तक भीम ने दुर्योधन के कमर से नीचे वार कर दिया था, जिसके कारण दुर्योधन अपनी अंतिम सांस ले रहा था।..Next
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