महाभारत हिन्दू धर्म का वह महाकाव्य है जिससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. ऋषि वेद व्यास द्वारा रची महाभारत में दो भाइयों कौरवों और पांडव के बीच का संघर्ष दिखाया गया है. महाभारत के युद्ध से पूर्व ऐसी बहुत सारी घटना घटित होती हैं जो आगे युद्ध के समय सामने आती हैं. इसमें से एक ऐसी ही घटना है कुन्ती पुत्र कर्ण की, जानें कुन्ती को अपने पहले पुत्र को त्यागना पड़ा था.
कुन्ती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थीं और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं. कुन्ती का असली नाम शुरासेना था जो उनके पिता पृथा ने रखा था. महाराज कुन्तिभोज से इनके पिता की दोस्ती थी, लेकिन उनकी कोई सन्तान नहीं थी. ऐसे में महाराज पृथा ने उन्हें कुन्तिभोज को गोद देदी और उन्हीं की पुत्री होने के कारण इनका नाम कुन्ती पड़ा.
एक बार उनके यहां ऋषि दुर्वास आये जिनकी देख रेख के लिए कुन्ती को भेजा गया. कुन्ती के सत्कार और निष्ठा को देख कर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वरदान दिया कि वे किसी भी भगवान को बुला कर उनसे पुत्र मांग सकती हैं. कुन्ती ने उत्सुकतावश यह जानने की इच्छा हुई कि क्या यह मंत्र सच्चा है, तब उन्होंने आकाश में भगवान सूर्य को देख मंत्र पढ़कर सूर्यदेव का स्मरण किया.
कुन्ती ने मंत्र पढ़ने के बाद भगवान सूर्य कुन्ती के सामने आ गए. उनके सुंदर रूप को देखकर, कुन्ती आकर्षित हो गईं, सूर्य ने कहा, कुन्ती में तुम्हें पुत्र देने आया हूं. कुन्ती घबरा गईं. उन्होंने कहा कि मैं अभी कुंआरी हूं, ऐसे में मैं पुत्रवती नहीं होना चाहती. सूर्य ने कहा कि में मंत्र के वरदान स्वरूप तुम्हें पुत्र जरूर देकर जाउंगा. इस तरह कुन्ती ने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया, वह बालक जन्म के समय से ही तेजस्वी और सुंदर था.
पुत्र होने के बाद उसे बिन शादी के माँ बने का डर लगने लगा, इसलिए कुन्ती ने उस पुत्र को एक संदूक में रखकर गंगा नदी में बहा दिया. वह संदूक तैरता हुआ, अधिरथ नाम के एक सारथी की नजर में पड़ा. सारथी की कोई संतान नहीं थी, उसने जब संदूक खोला तो उसे पुत्र मिल गया और सारथी ने उस बच्चे का नाम कर्ण रखा…Next
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