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इन दो कहानियों में छुपा है नवरात्र को मनाने का अद्भुत रहस्य

नवरात्र के आगमन से संपूर्ण वातावरण आनंदित हो उठता है. आज कलियुग के समय में भी मां के भक्तों की संख्या कम नहीं है इसे मां दुर्गा का प्रताप ही कहा जाएगा कि आज भी संसार में निरंतर बढ़ती बुराईयों के बीच भी भक्तजनों की श्रद्धा में कमी नहीं आई है. अधिकतर लोग नवरात्र के आंरभ से कई माह पहले ही पूजा, कींर्तन और व्रत की तैयारियां कर लेते हैं, उनके मन में नवरात्रों को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. इन सभी बातों के साथ ही अधिकतर लोगों में विभिन्न प्रकार की धार्मिक कहानियों और मान्यताओं के बारे में जानने की इच्छा हमेशा रहती है. इसी तरह मां दुर्गा के विशेष पर्व नवरात्र से जुड़ी हुई कहानियां सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं. विभिन्न पुराणों में नवरात्र को मनाने के पीछे काफी कथाएं मिलती है. उनमें से कई कहानियां आज भी लोगों में काफी लोकप्रिय है.


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महिषासुर का वध करके मां दुर्गा ने की संसार की रक्षा

एक कथा के अनुसार महिषासुर को उसकी उपासना से ख़ुश होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वर प्रदान कर दिया था. उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया. महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवताओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा.


देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था. तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने मां दुर्गा की रचना की. महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र मां दुर्गा को समर्पित कर दिए थे जिससे वह बलवान हो गई. नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके मां दुर्गा महिषासुरमर्दिनी कहलाईं.


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श्रीराम और रावण द्वारा मां चंड़ी देवी को प्रसन्न करना

लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई. वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया. यह बात इंद्रदेव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडीपाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए. इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा. भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं. दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ भी कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी प्रकट हुईं और हाथ पकड़कर कहा ‘राम मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया.’


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वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए. निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा. इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा ‘प्रभु! आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए.’ ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया. ‘मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है.’ भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया. हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी..next


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