दिवाली की रौनक हर तरफ दिखाई दे रही है. दिवाली को लेकर सभी का अपना खास प्लॉन है. ऐसे में सबके लिए दिवाली के मायने अलग-अलग है. किसी को घर की सजावट पसंद है, तो किसी को रंगोली के रंग भाते हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें तरह-तरह की मिठाईयां और पकवान पसंद हैं. दिवाली से कई रिवाज जुड़े हुए हैं. ऐसा ही रिवाज है ताश यानी कार्ड्स खेलना. कुछ लोग दिवाली से 2-3 दिन पहले कार्ड खेलना पसंद करते हैं. उनका मानना होता है कि दिवाली के आसपास कार्ड्स खेलने से भाग्य उदय होता है. जबकि कुछ लोग इससे सहमत नहीं होते हैं.
लेकिन बात करें पौराणिक कहानियों की, एक कहानी के अनुसार माता पार्वती और शिव शंकर दिवाली की रात चौसर का खेल खेला था. इस खेल में माता पार्वती हमेशा ही विजय रही थी. वास्तव में, शिव ने जब ये देखा कि पार्वती इस खेल को खेलकर अत्यंत प्रसन्न हैं, तो उन्होंने पार्वती को खुश देखने के लिए हार-जीत को परे रखकर खेल में हार गए. अंत में जब पार्वती को पता चला कि शिव उन्हें प्रसन्न करने के लिए जानबूझकर हार गए हैं, तो भगवान शिव का प्रेम और समर्पण देखकर वो अत्यंत प्रसन्न हुई.
उन्होंने शिव से कहा कि आपने खेल में हार-जीत से ऊपर प्रेम को रखा. दिवाली का यही मर्म है कि जिन्हें हम प्रेम करते हैं, उन्हें प्रसन्नचित रखा जाए. प्रेम और सम्बधों को हार-जीत से अधिक महत्व देते हैं, वहां समृद्धि और खुशहाली का वास होता है. बदलते वक्त के साथ चौसर की जगह ताश खेले जाने लगा. साथ ही माना जाने लगा कि दिवाली के दिन ताश खेलना शुभ होता है. साथ ही इस दिन ताश खेलने से भाग्य उदय होता है. ..Next
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