श्रद्धालु अपने परिवार की सुख-शांति हेतु किसी मंदिर के जलाशय या किसी पवित्र नदी में सिक्के अर्पित करते हैं. हालांकि इस तरह की आस्था को कई लोग अंंधविश्वास भी समझते हैं. जबकि किसी पवित्र नदी या मंदिर के जलाशय में सिक्का फेंकने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है.
श्रद्धालु के जीवन में चल रहे नकारात्मक प्रभाव दूर या बहुत कम होता जाता है. साथ ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और सदा जीवन में खुशहाली रहती है. माना जाता है कि ऐसा करने से ईश्वर की कृपा पाने का साधन मिल जाता है. ऐसे में कई लोगों के मन में यह विचार आता है कि- इस तथ्य को कैसे माना जाए?
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इस आस्था के पीछे वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि, पानी में सिक्का फेंकने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. उस समय तांबे के सिक्के हुआ करते थे और तांबा को शुद्ध धातु माना जाता है. इसलिए इसका इस्तेमाल पूजा-पाठ में भी किया जाता है. साथ ही तांबे को सूर्य का धातु माना जाता है और यह हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक तत्व है.
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प्रसिद्ध लाल किताब में भी सूर्य और पितरों को प्रसन्न करने हेतु तांबे को पहले जल में प्रवाहित करने का विधान विस्तार से बताया गया है. आज तांबे के सिक्के आपको नहीं मिलेंगे. परन्तु यह प्राचीन परंंपरा आज भी जारी है. श्रद्धालु आज भी सिक्कों को उसी परंपरा के तौर पर पानी में फेंकते हैं. Next…
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