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क्यों करते हैं मंदिर की परिक्रमा?

परंपरागत रूप से भक्त यह मानकर चलते हैं कि किसी भी देवी-देवता की अराधना में मंदिर की परिक्रमा जरूरी होता है. कई भक्त परिक्रमा से प्राप्त फल और विधि जाने बिना ही मंदिर की परिक्रमा करते हैं. धार्मिक ग्रंथों में पूजन विधि के वैज्ञानिक तर्क विद्यमान हैं जिसमें मंदिर की परिक्रमा भी शामिल है. पूजा-पाठ में देवी-देवता की परिक्रमा का महत्व गणेशजी की एक कथा में भी है. जब गणेशजी और कार्तिकेय को पूरे संसार का चक्कर लगाने को कहा गया तो गणेशजी ने शिव और पार्वती जी की परिक्रमा कर कहा कि-आप मेरे माता-पिता हैं और आप ही मेरे लिए संसार हैं. आगे जानिए परिक्रमा से जुड़े अन्य महत्व और विधि…


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परिक्रमा की विधि- परिक्रमा में यह ध्यान रखें कि भगवान की प्रतिमा आपके दाहिनी ओर होनी चाहिए. यह विधि एक प्रतीक के रूप में होता है जो हमें याद दिलाता रहता है कि हमें अपने जीवन में सदेव धर्म की राह पर ही चलना चाहिए. परिक्रमा करते समय भक्त को घड़ी की सुई की दिशा में घूमना चाहिए. परिक्रमा करते हुए मन की दुविधा को याद करे और भगवान से इसे दूर करने के लिए प्राथना करें. साथी ही परिक्रमा के समय यह जाप करें- ओम् नमः शिवाय्, ओम् नमः शिवाय्.


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कई बार कुछ भक्त मंदिर के मुख्य देवता के सामने खड़े होकर एक गति में घूमते हैं. यह एक प्रतिक है उस पृथ्वी की जो अपने अक्ष पर एक निश्चित लय से घुमती है. वे कम से कम तीन बार ऐसा करते हैं. इसे विधि को आत्मप्रदक्षिणा कहते हैं.


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परिक्रमा की इस विधि को अंतिम बार हथेलियों को प्रणाम की मुद्रा में एक साथ लाकर और पूर्ण नमन करते हुए इसे समाप्त करना चाहिए. कहा जाता है किसी भी देव प्रतिमा को अपनी पीठ नहीं दिखानी चाहिए. अंतिम नमस्कार मंदिर के ध्वज स्तंभ को किया जाता है, यह मंदिर पर लगा हुआ झंडा होता है.


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परिक्रमा की निश्चित संख्या- सभी देवी-देवता के लिए अलग-अलगपरिक्रमा की विधि हैं. यदि देव गणेश हैं, तो कम से कम एक परिक्रमा किया जाता है और यदि शिवजी हैं, तो दो परिक्रमा करनी चाहिए. विष्णुजी के लिए आपको तीन बार और दुर्गा माता के लिए 6 से कम परिक्रमा नहीं करनी चाहिए.


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ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा की विधि केवल हिन्दू धर्म में ही है परन्तु ऐसा नहीं है. परिक्रमा की विधि दुनिया के कुछ अन्य धर्मों में भी होता है. परिक्रमा के पीछे सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं.Next…


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