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एक ऐसा शिवलिंग जिसकी पूजा मनवांछित फल नहीं देती

उत्तराखंड प्रसिद्ध देवस्थलों के लिये मशहूर है. केदारनाथ, बद्रीनाथ के अलावा यहाँ पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट तहसील में भी एक मंदिर है. इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती. पढ़ने में अटपटी लग रही इस तथ्य के पीछे एक मान्यता है. एक ऐसी मान्यता जिसने इस मंदिर को प्रसिद्धि तो दिला दी है, लेकिन किसी अन्य कारण से.


hathiya deval


एक हथिया देवालय के नाम से मशहूर इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है. किंवदंतियों के अनुसार किसी मूर्तिकार का हाथ एक हाथ बेकार हो गया था. मूर्तियों का शिल्पी वह कारीगर एक हाथ से मूर्तियाँ बनाता था. उसके आस-पास के लोग न चाहते हुए भी उससे पूछ लेते कि, ‘एक हाथ से वह कैसे काम करेगा?’ लोगों के मुँह से निकले इस प्रश्न को वह सुनता था परंतु उसे यह नश्तर की तरह चुभती.


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लगातार एक ही सवाल को सुन उसे खीझ होने लगी थी. एक रात उसने लोगों को जवाब देने के बजाय उस स्थान से दूर चले जाने का निश्चय कर लिया. उसने अपने औजारों को एकत्र किया और उन्हें साथ लेकर वहाँ से जाने लगा. जाने से पहले उसने इस मंदिर में शिवलिंग बनायी. सूर्योदय से पहले निकलने के चक्कर में उसने शिवलिंग के अरघे की दिशा बदल दी. उसके बाद वह वहाँ से चला गया. सुबह जब लोग उस मंदिर में पहुँचे तो उन्होंने वहाँ बना शिवलिंग देखा. शिवलिंग के अरघे को विपरीत देशा में देख उन्हें निराशा हुई. उन्होंने कारीगर को ढूँढ़ा लेकिन वह तो बोर होने से पहले ही निकल चुका था.


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शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग के अरघे का विपरीत दिशा में होना एक प्रकार का दोष होता है. इस दोष के कारण शिवलिंग की पूजा से वांछित परिणाम की प्राप्ति नहीं होती. यही कारण है कि मंदिर में बनी इस शिवलिंग की आज तक पूजा नहीं हुई.Next….


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