हिंदू मान्यताओं के अनुसार यमलोक के राजा यमराज को मृत्यु और काल का स्वामी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यमराज मनुष्य की आत्मा को लेने के लिए पृथ्वी पर अपने वाहन भैंसे पर सवार होकर आते हैं। वह जिस भी मनुष्य की आत्मा लेने के यमलोक से प्रस्थान करते हैं उस मनुष्य को मृत्यु से कोई बचा नहीं सकता है। पुराणों में मृत्यु से बचने या अल्प मृत्यु के योग से छुटकारा पाने का उपाय भी बताया गया है। इसके साथ 4 महत्वपूर्ण नियमों का उल्लेख भी मिलता है। आइये जानते हैं मृत्यु से बचने के उपाय के बारे में।
यमी और यमराज की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की दो जुड़वां संताने हुईं। यह दोनों संतान एक पुत्र और पुत्री के रूप में जन्मे। पुत्र का नाम यमराज रखा गया और पुत्री का नाम यमी रखा गया। यमराज अपनी यमी को बहुत स्नेह करते थे। बाद में यमराज यमलोक के स्वामी हो गए और यमी का विवाह महाराज चित्रगुप्त के साथ कर दिया गया।
यमराज को घर आया देख खुश हो गईं यमी
यमराज अपनी बहन यमी को स्नेह और प्रेम तो बहुत करते थे लेकिन काम की व्यस्तता के चलते वह कभी यमी के घर यानी उसकी ससुराल उनसे मिलने नहीं जा पाते थे। हर बार यमी ही यमराज के यहां पहुंच उनका कुशलक्षेम पूछती थीं। एक बार अचानक यमराज अपनी बहन से मिलने महाराज चित्रगुप्त के महल में पहुंच गए। भाई को घर आया देख बहन यमी ने खूब स्वागत सत्कार किया।
प्रसन्न यमराज ने वरदान मांगने को कहा
यमी ने यमराज को रोली चंदन और अक्षत से तिलक किया और उनकी आरती उतारी। यमी ने भाई के लिए तत्काल पकवान और मिठाइयां बनाईं और उन्हें भोजन कराया। बहन को खुशहाल देख यमराज प्रसन्न हुए और कुछ समय विश्राम करने और कुशलक्षेम जानने के बाद लौटने की अनुमति मांगी। यमराज ने बहन के आतिथ्य और स्वागत से प्रसन्न होकर यमी से उपहार स्वरूप वरदान मांगने को कहा।
यमी ने प्रतिवर्ष आने का वचन लिया
यमी ने भाई यमराज से कहा कि मुझे कोई वरदान नहीं चाहिए, लेकिन मुझे यह वचन चाहिए कि आप प्रतिवर्ष इसी दिन उससे मिलने आएंगे। इसके अलावा यमी ने कहा कि आप ऐसा वचन दें कि जो भाई कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को अपनी बहन के घर जाएगा और उसके हाथों तिलक कराकर आतिथ्य स्वीकार करेगा उसे मृत्यु का भय नहीं होगा। यमराज ने अपनी बहन के भोलेपन से खुश होकर वचन दे दिया। इस तिथि को यम द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है।
अल्प मृत्यु और काल के भय से बचने के 4 उपाय
यम द्वितीया के दिन यमराज की पूजा करने से अल्प मृत्यु का योग टल जाता है और उसे काल का भय नहीं रहता है। यम द्वितीय की पूजा के लिए भी कुछ नियमों के पालन का विधान बताया गया है।
1- इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले यानी प्राताकाल में यमुना नदी में स्नान किया जाए। यमराज की बहन यमी पृथ्वी पर यमुना नदी के रूप में अवतरित हुई हैं। ऐसे में यह स्नान महत्वपूर्ण हो जाता है।
2- यमराज की पूजा के दौरान चंदन रोली और अक्षत से तिलक करना महत्वपूर्ण है। इसके बाद पकवान और मिठाइयां अर्पित करना जरूरी
3- पूजा के दौरान यमुना नदी का जल यमराज को चढ़ाना जरूरी बताया गया है। इसी जल को अल्प मृत्यु के योगधारी पुरुष को ग्रहण करना अतिआवश्यक होता है।
4- यम द्वितीया के दिन बहन के घर जाने पर उसे उपहार अवश्य दें। क्योंकि यमराज ने वरदान स्वरूप अपनी बहन को उपहार दिया था।…Next
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