आपको याद होगा, बचपन में छत पर काला कौआ बैठे देखकर हम उसे कौआ मामा कहकर बुलाते थे. वहीं दूसरी तरफ आम धारणा ये भी थी कि जिस घर की छत पर कौआ बैठकर कांव-कांव करता है, वहां किसी अतिथि के आने की सम्भावना रहती है. इन सभी मान्यताओं के पीछे क्या आपने कभी सोचा है कि कौए को शास्त्रों और पुराणों में इतना महत्व क्यों दिया गया है. श्राद्ध में भी पूर्वजों की थाली के साथ कौए के लिए भी अन्न निकालकर रखा जाता है. आइए, हम बताते हैं इसके पीछे का कारण.
कौए को कहा जाता है यमराज का दूत
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि शास्त्रों में कौए को यमराज का दूत कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जब हम श्राद्ध में अपने पूर्वजों को अन्न का भोग लगाते हैं और कौए के लिए अन्न की थाली रखते हैं तो कौआ यमराज का दूत होने के नाते यमलोक में जाकर हमारे पूर्वजों की आत्माओं को उनकी संतान और वंश की स्थिति के बारे में बताता है. श्राद्ध भोज में शामिल किए गए भोजन की मात्रा और खाद्य समाग्री को देखकर कौआ यमलोक में जाकर सुख-सुविधा और जीवन से जुड़े हर पहलुओं के बारे पूर्वजों को विवरण देता है. जिससे हमारे पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है कि उनकी पीढ़ी सुख और सुविधा के साथ अपना जीवन निर्वाह कर रही है.
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जानवरों को सताने से नहीं मिलता कभी मोक्ष
शास्त्रों में कहा गया कि जानवरों को कभी किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचानी चाहिए. जानवर इंसानों से अधिक भगवान को प्रिय होते हैं, ऐसे में उनके द्वारा कही हुई सुख और दुख की बात भगवान तक तत्काल ही पहुंचती है. जानवरों को क्षति पहुंचाने वाले मनुष्यों को जीवन में कभी न कभी नियति द्वारा उनके कर्मों का फल अवश्य मिलता है…Next
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