मनुष्य को कोई कर्म करने से पहले ये बात जरूर सुनिश्चित कर लेनी चाहिए कि उसके द्वारा किए जा रहे कर्मों से, कहीं किसी जीव मात्र को कष्ट तो नहीं पहुंच रहा, क्योंकि कर्म चक्र में वो चीज घूमकर वापस आपके पास ही आती है जो आपने नियति को दी होती है. जैसे अगर आप किसी का बुरा करते हैं तो आप नियति को एक प्रकार से बुराई लौटा रहे हैं जिसका फल नियति आपको बुराई से ही देगी. कर्मचक्र सबके लिए समान है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में कर्मचक्र से छूट भी है जैसे अबोध बालक द्वारा भूलवश की गई कोई गलती अपराध की श्रेणी में नहीं आती. कर्म और आयु से जुड़ी एक ऐसी ही कहानी महाभारत में मिलती है.
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जिसके अनुसार यमराज को माण्डव्य नामक एक ऋषि ने श्राप दिया था. इस ज्ञानी ऋषि को यमराज द्वारा दिया गया दंड स्वीकार नहीं हुआ. मृत्यु के बाद माण्डव्य ऋषि का यमलोक की ओर गमन हुआ. तब यमराज ने दंड संहिता में से ऋषि को कांटों की सूली पर बैठने का निर्णय सुनाया. ये सुनकर ऋषि को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्होंने जीवनभर अच्छे कर्म ही किए थे. इस प्रकार व्यथित होकर माण्डव्य ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि ‘मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार का दंड मिला.
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तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक कीट की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा. तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता. तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है. यहां यमलोक में विराजमान होकर निर्णय सुनाना बहुत सरल है परंतु भूलोक में जीवन-मृत्यु के बंधन के बीच पड़कर समस्याओं से जूझना बहुत कठिन है. इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा. ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया…Next
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