जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पांचों पांडव में से युधिष्ठिर को धर्मराज का दर्जा दिया जाता है. महाभारत में युधिष्ठिर एक ऐसा पात्र है जिनके मानवीय गुणों से आज भी लोग प्रभावित होते हैं. भाईयों के प्रति लगाव और कर्तव्यपरायणता के चलते उन्हें आज कलियुग में भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. मौसल पर्व में लिखी कथा के अनुसार युधिष्ठिर एक मात्र ऐसे इंसान थे जो स्वर्ग में सशरीर गए थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि युधिष्ठिर को अपनी एक भूल की वजह से नरक का अनुभव भी लेना पड़ा था.
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महाभारत के युद्ध के बाद कुछ सालों में ही चारों ओर विनाश लीला की दस्तक होने लगी थी. श्रीकृष्ण भी मानव देह को त्यागकर बैकुंठ की ओर प्रस्थान कर चुके थे. श्रीकृष्ण के निर्वाण के बाद पांडवों ने परलोक जाने का निश्चय किया. हिमालय पार कर जब पांडव स्वर्ग की ओर जाने लगे तो युधिष्ठिर को छोड़कर सभी एक-एक करके मार्ग में ही गिरते गए. अंत में स्वयं देवराज इंद्र अपने रथ में युधिष्ठिर को बैठाकर स्वर्ग ले गए. जब युधिष्ठिर ने देखा कि स्वर्ग में उनके भाई नहीं हैं तो उन्होंने देवताओं से वहां जाने की इच्छा प्रकट की, जहां उनके भाई थे. युधिष्ठिर की बात मानकर देवराज इंद्र ने उन्हें नरक के द्वार पर लाकर छोड़ दिया.
वहां जाकर युधिष्ठिर को दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी, वे युधिष्ठिर से कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे. युधिष्ठिर ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी के रूप में अपना परिचय दिया. तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम दुबारा देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा. देवदूत ने यह बात जाकर देवराज इंद्र को बता दी.
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युधिष्ठिर को उस स्थान पर अभी कुछ ही समय बीता था कि सभी देवता वहां आ गए. देवताओं के आते ही वहां सुगंधित हवा चलने लगी, मार्ग पर प्रकाश छा गया. तब देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था. इसी परिणामस्वरूप तुम्हें भी छल से ही कुछ देर नरक के दर्शन पड़े. अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो. वहां तुम्हारे भाई व अन्य वीर पहले ही पहुंच गए हैं…Next
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