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प्रेम – प्रणय

दास्ताँने दिल
दास्ताँने दिल
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पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.

अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.


मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,

धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,

गति तुमसे ही है साँसों की, जीवन तुम्हें समर्पित है,

अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.


चहक उठा है सूना आँगन, महक उठी हैं दीवारें,

खुशियों की भर भर भेजी हैं, बसंत ऋतु ने उपहारें,

बाकी जीवन पूर्णरूप से केवल तुमको अर्पित है,

अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.


मधुरिम प्रातः सुन्दर संध्या और सलोनी रातें हैं,

भीतर मन में मिश्री घोलें मीठी मीठी बातें हैं,

प्रेम तुम्हारा निर्मल पावन पाकर तनमन हर्षित है,

अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

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