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ग़ज़ल – अनसुनी बात करके रवाना हुआ

दास्ताँने दिल
दास्ताँने दिल
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बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम

अनसुनी बात करके रवाना हुआ,
जान पड़ता है बेटा सयाना हुआ,

टूट के दिल पे मेरे गिरीं बिजलियाँ,
फूल की भांति उसका लजाना हुआ,

दरमियाँ दूरियां बढ़ गईं दोस्तों,
जबसे गैरों के घर आना जाना हुआ,

बेबसी ये घुटन हसरतों का निधन,
राख खुशियों का भी कारखाना हुआ

बेसबब बेवजह बेहया याद का,
बेघड़ी बेधड़क खूब आना हुआ,

हर बुरा है भला अब गलत है सही,
मूक अंधा कि बहरा जमाना हुआ.

अरुन शर्मा ‘अनन्त’

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