दास्ताँने दिल
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दोहे |
दुखदाई यह वेदना, बेहद घृणित प्रयत्न । दुर्जन प्राणी खो रहे, कन्या रूपी रत्न ।। सच्ची बातों का बुरा, लगता है लग जाय । स्तर गिरा है पशुओं से, रहे मनुष्य बताय ।। नारी से ही घर चले, नारी से संसार । नारी ही इस भूमि पे, जीवन का आधार ।। माता पत्नी बेटियाँ, सब नारी के रूप । नारी जगदम्बा स्वयं, नारी शक्ति स्वरुप ।। कन्या को क्यूँ पेट में, देते हो यूँ मार । बिन कन्या के यह धरा, ज्यों बंजर बेकार ।। विनती है तुम हे प्रभू, ऐसा करो उपाय । बुरी दृष्टि जो जो रखे, नेत्रहीन हो जाय ।। |
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