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बसंत के दोहे

दास्ताँने दिल
दास्ताँने दिल
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बदला है वातावरण, निकट शीत का अंत ।

शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।


अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।

ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।


धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।

इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।


डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।

आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।


पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।

मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।


गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।

पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत ।६।


पर्व महाशिवरात्रि का, पावन और विशेष ।

होली करे समाज से , दूर बुराई द्वेष ।७।


अद्भुत दिखता पुष्प से, भौरों का अनुराग ।

और सुगन्धित बौर से, लदा आम का बाग़ ।८।

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