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औरत की जेब क्यूँ नहीं होती?

विचार मंथन
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‘जेब’ यानि पॉकेट यानि पैसा, ताकत संसाधन जुटाने और बाज़ार को खरीदने की ताकत पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान समाज में ‘ जेब’ शर्ट और पैंट में पाए जाते हैI जो महिलाए शर्ट और पैंट पहनती भी है, वो पैसे जेब में न रखकर पर्स में रखती है, पारंपरिक परिधान जैसे साड़ी, सलवार-कमीज़ में जेब नहीं होती है, इसका मतलब ये नहीं नहीं की महिला के पास पैसे नहीं होते, सवाल ऐसा है की बाज़ार में क्या खरीदना है, ये कौन तय करता है? पैसा होना अलग बात होती है उसे खर्च करना का निर्णय अलग, एकेल परिवार में रहने वाले किसी कमाऊ पुरुष से पूछे तो वो इस दर्द को खुले मजाक में कहेगा, होम मिनिस्ट्री तो बीवी संभालती हैl पर हम सब जानते है की फाइनेंस मिनिस्टर के बिना सहमति के कुछ नहीं ख़रीदा जा सकताl है,कुछ घर अपवाद हो सकते हैl

मैं एक महिला के बारे में बताना चाहूंगी,जब मैंने उसे देखा तो वो आम महिला सी दिखी बाद में माँ ने बताया की इसके पति ने इसे छोड़ दिया है, फिर जोड़ते हुए कहा बदमाश आदमी है नशेड़ी एक पैसा नहीं देता था, अपने घर का टीवी तक बेच दिया नशा के चकर में घर छोड़कर भाग गया  मेरी समझ में नहीं आया की औरत को आदमी ने छोड़ा या उसका आदमी घर छोड़कर भाग गया पर उस औरत के माथे पर समाज ने लिख दिया की इसका आदमी इसको छोड़ गया है, उस औरत के पास भी जेब नहीं थीl तीन बेटे है, बड़ा शादीकर अलग है, बीचवाला नौकरी करता है, छोटा पढता है सरकारी स्कूल में, ये औरत बटन लगाने का काम करती है क्यूंकि इस काम को सिखने के लिए कम पैसे और मेहनत लगते है, चुकी वो मुश्किल से दस से पचास रूपए प्रतिदिन कमा लेती कुछ पैसे बेटा दे देता है, पेटभर जाता होगा मेरी समझ से, उसकी जेब मज़बूरी में बनी है क्यूंकि जीना तो है, इसलिए उसे कमाना पड़ता हैl
समाज महिला को पैसे के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के बहुत पक्ष में नहीं दिखता, कामकाजी महिलाएं को कमाऊ सदस्य की तरह नहीं बस वैकल्पित आय का जरिया की तरह देखा जाता हैl यदि घर में ऐसी परिस्तिथि आ जाए की किसी को सारा दिन घर सँभालने के लिए रहना हो तो, महिला से ही नौकरी छोड़ बलिदान की अपेक्षा की जाती है, वर्त्तमान समय को देखते हुए लगता है की बाज़ार पर पूरी तरह निर्भर समाज में एक कमानेवाले व्यक्ति पर निर्भर रहना जोकिम उठाने जैसा लगता हैl
समाज में आर्थिक रूप से महिलाओ की भागीदारी को पहचान की भी आवश्कता हैl साथ ही महिला की पैसे तक पहुँच, संसाधन को जुटाने की क्षमता और आर्थिक मामलो में निर्णय के आज़ादी को प्रोत्साहन देना होगाl तभी हम एक संतुलित और सुरक्षित परिवार की परिकल्पना कर सकते हैl

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