विचार मंथन
- 27 Posts
- 111 Comments
शिकायत साँझ ने कुछ ऐसे की
जैसा कोई रूठा दोस्त शिकायत कर रहा हो
कहा की मुझे भूल गया तू
सुबह से रात तक जगता
खून पसीना बहा
कागज़ जोड़ रहा
आज हाथ थाम
उसने लिया बैठा
उस गाँव मे जिसे
बहुत पहले अकेला छोड़ आया था मैं तनहा,
शाम ने धुंध को लपेटे हुए पूछा
उस शहर में ऐसा क्या पाया
तूने जो अपनी मिट्टी को
पीछे छोड़ दिया
गाँव की पगडण्डी को मोड़
शाम से नाता तोड़ दिया
रात से दिन तक यंत्रमानव
बना हुआ
रुक कभी मेरे साथ यहाँ
दिन की धुप और रात के अँधेरे के
बीच में है यही शाम
जो तुझे थामे हुए है
मेरे साथ कभी बैठ जरा..
Rinki
Read Comments