मेरी कहानियां
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उसकी आँखों में
फिर मैंने देखा
दर्द का वो बादल
जो उमड़ रहा था
बाहर निकलने को
बारिश की बुंदों सी
जैसे मैंने सहलाया
प्यार से उसे
तो अनायस ही
आँखों से अश्रु मोती बन
उमड़ पड़ी थी उसके
गालों पर
मैं स्तब्ध बन
खड़ी थी उसके सामने
और
सोच रही थी…..
सदा मुस्कानों के बीच
घिरी रहने वाली
उस चेहरे के पीछे
नजाने कितना दर्द
छुपा हुआ था
बेखबर
दिल के अंदर था
तुफानों का सैलाब
जो बेइंतहा दर्द
आंसू बन
बहने लगी थी
मैं मूक थी…..
पर उसकी
अनकही पीड़ा
जैसे अपना सा
लगने लगा था मुझे
शायद
भूली बिसरी यादे
वर्षो पहले का
यकायक
सजिव हो उठी थी
मेरे सामने !!
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ऋता सिंह”सर्जना”
तेजपुर( असम)
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