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कविता

मेरी कहानियां
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मैना (कविता )

मेरे पाकशाला के
बरामदे में
रोज सुबह
आती है
कुछ मैना
जो चुगती हैं
कुछ अन्न के दाने
हर रोज
बिलकुल
होकर निर्भीक
जैसे हो
कोई नाता मुझसे
वर्षों पुराना
मेरे सामने
वह विचरण करती
और दाने चुगती …..
अब मुझे हर दिन
जैसे उसका
इंतजार हैं रहता
कब आकर वो दाने चुगे
उसके हिस्से के दाने
अलग निकाल के रखती
संतुष्टि होती मुझे
जब वह आकर
दाने को चुगती
पर कुछ दिनों से
मैना दिखाई नहीं
दे रही
आशंकित मन
विचलित हो रहा हैं
कही मैना
किसी शिकारी के
शिकार तो नहीं हो गई ?
*************************
रीता सिंह ‘सर्जना’

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