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‘खून चाहिए’ (नेपाली अनुदित कहानी )

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खून चाहिए (नेपाली अनुदित कहानी )मूल भाविलाल लामिछाने ,दिगबोई (असम)

दरवाजा खोलिए ……………..एक आवाज फिर ट्रिंग-ट्रिंग ………………..कलिंगबेल l रात ख़त्म नहीं हुई हैं न ही सुबह होने को हैं l ऐसी घडी में मीठी नींद को विघ्न डालने वाली कलिंगबेल की आवाज से मैं चौक गया l देर रात सोने की वजह से सुबह होने की ओर आँखे लगी थी l उसी समय तोता की आवाज वाली कलिंगबेल हमेशा कोई न कोई अप्रत्याशित घटना का संकेत देता हैं जो शुभ कम ही होता हैं l तो फिर यह किसका संकेत हैं ? किसी का स्वर्गारोहण तो नहीं हुआ ? या फिर सीरियस बिमारी ! कल शाम तक तो सब कुछ ठीक-ठाक ही था फिर रात भर के अन्दर ऐसी क्या घटी जो मित्र वर्ग सुबह की प्रतीक्षा किये वगैर कलिंगबेल बजाने आ पहुंचे l
अलसाए आँखे लिए मैं उठा l नींद अभी भी हाबी थी l दरवाजा खोलने पर बाहर देखा तो खेमप्रसाद और अरुण खड़ा था l उन्हें अन्दर आने का इशारा करते हुए मैंने आँखे मिचते हुए ही पुछा – ” सब ठीक तो हैं न ?” वे कुछ नहीं बोले l उनलोगों को चुप होते देखकर मेरा मन और भी शंकित हो उठा l “रातभर सो नहीं पाए हैं l ” अरुण ने चुप्पी तोड़ी l
“तो क्या तुमलोग यहाँ सोने आये हो ?आखिर ऐसा हुआ क्या हैं ,खुलासा नहीं करोगो ?” मैं थोडा झिड़क कर बोला -“घर में आग लगी हैं क्या ? या फिर किसी के जनाजे में जाना तो नहीं ? ”
“बस ……बस कीजिये ………….उतना उत्तेजित न हो ……….पंडित जी बीमार हो गए हैं ………….l अस्पताल में छोड़ कर आये हैं l खेम प्रसाद के स्पस्टीकरण से मैं थोडा आश्वस्त हुआ l एक लम्बी साँस छोड़ते हुए मैंने उनसे पुछा-” चाय बनाऊ?”
“नहीं हमें चलना चाहिए l ”
“कहाँ ?अस्पताल ! ”
” मिलने के लिए बाद में जाने से भी होगा ,
सच में पंडितजी की अवस्था वाकई में खराब हैं l उन्हें खून चाहिए l ”
” कल तक तो ठीक ही थे l धने के साथ लड़ाई करते समय पंडित जी की जकड़न देखकर मैं दंग रह गया था l फिष्टा (दुबला और छोटी चिड़िया ) जैसे शरीर में उतने सारे जकड़ने वाला बल !
हमारे मीटिंग से जाने के बाद उन्होंने खून-खराबा किया था l अस्पताल पहुंचाकर इमरजेंसी वार्ड में
भरती करना पड़ा l ” जाँच करने के बाद डॉ. ने कहा हैं आपरेशन के लिए आठ घंटे का समय दिया हैं l
“पंडित जी का अल्सर था न ?”
“हाँ , दिनभर यजमानी करते फिरते हैं l समय पर भोजन नहीं करते “अल्सर ” हो गया l कल जैसे चिल्लाया था मुझे लगा उसके शरीर का नस फट जाएगा l खाली पेट था शायद …..”अल्सर न फटा हो l अब देखो न खून चाहिए ,वह भी थोडा नहीं पुरे ६ बोतल l ”
“ब्लड ग्रुप ?”
“ए निगेटिव ”
“बूढ़े को ब्लड ग्रुप भी ऐसा ही मिलना चाहिए था ?”
“टेडा इंसान का असहज ग्रुप ”
“मगर असुविधा तो हमें हुआ हैं l कहाँ खोजे निगेटिव ए ग्रुप का खून ?”
“धन बहादुर सार्की ! ”
“उस धन बहादुर का खून ! जिसे कल उठाकर नाले में फेंक चूका था l ” खेम प्रकाश ने कहा l
” हाँ कल की घटना ने समस्या को और भी जटिल बना दिया हैं “- खेम प्रसाद की यह आशंका (निर्मूल ) भी तो नहीं था l और फिर जल्दी-जल्दी में ए निगेटिव का आदमी प्राय : यहाँ हैं भी तो नहीं ! अब वही धन बहादुर सार्की के घर जाकर हाथ फैलाने के सिवा कोई चारा नहीं हैं l ” मैंने कहा l
वैसे तो दो आदमी मिला हैं l एक ने तो महिना भर पहले खून दिया हैं और दूसरा राम प्रसाद उपाध्याय जो चाहता हैं सेकेण्ड चोइज में रहे l
मतलब यदि मरने की कगार में पहुंचा तो ……..अरुण ने स्पस्ट किया l
पंडित जी मरने के कगार में तो ही हैं l अब …….., देने का मन नहीं हैं इसीलिए दस बाते कर रहा हैं l ”
छोड़ो अब समय नष्ट किये वगैर चलो चलते हैं धने के पास l
“देखते हैं भेंट करने में क्या आपत्ति हो सकती हैं l ज्यादा से ज्यादा बहुत बाते सुनाएगा ,आदमी को बचाना तो पड़ेगा न !”
मैं कपडे बदलने अन्दर अन्दर घुसा ल
बाहर अँधेरा था l अध्काची नींद से जागने के कारण आँखे जल रही थी l घर से निकलते वक्त नजाने कितने प्रसांगिक-अप्रसांगिक प्रश्न सरे मेरे मन में आता रहा l क्या धन बहादुर मान जाएगा ? कल रात की झगडा या दो संस्कारों के बिच की लड़ाई या दो संस्कारों के बीच की लड़ाई ? या हमें कहाँ तक लेकर जाएगा? खून न मिलने से पंडित मर गए तो ? आदि-आदि l
कल पुरुषोत्तम महात्मा का समापन पूजा था l टिका लगाने को लेकर फिर समस्या कड़ी हो गयी थी l मंदिर में सम व् य्व्हार का,उंच-नीच की लड़ाई एक लम्बे अरसे से चली आ रही शीतयुद्ध का विस्फोट समय-समय पर घटने वाली इसी बुरी लगने वाली घटनाएं कही-कही कर्ण-अर्जुन और एकलव्य-द्र्नाचारी की याद दिलाता था l उसका अंत भला हैं कहाँ? ” मेरे माथे पर अक्षत की टिका लगाने से कौन सा न समाज बितुलो होगा ?दुकान में जब मेरे हाथों से दल चावल लेकर खा सकते हैं l तेल घी खा सकते हैं; l मेरे द्वारा नल का पानी खोल ने पर तुम नहाकर शुद्ध होते हो ; मेरे सिले’ दौरा -सुरुवाल ‘ (नेपाली पारंपरिक परिधान जो पुरुष पहनते हैं ) नहीं पहनने से तुमलोगों का दुल्हा सज नहीं पायेगा; नौमती बाजा वाद्य यन्त्र जो खास शादी में बजाते हैं ) बाजा नहीं बजने से तुम लोगों की संस्कृति बच नहीं सकता; मैं जुते न सिऊ तो तुम्हारे पैरों में काँटा चुभेगा …….मगर मेरे माथे पे दो अक्षत लगाने से तुम्हारा जात चला जाएगा l तुम्हारे पंडित हमारे घर पूजा करे तो तुम्हारा समाज बितुला ( ) हो जाता हैं ……..छि….थू …..धने चिल्ला रहा था परन्तु वह क्या कह रहा हैं उसका उसे कोई अंदाजा नहीं था l आक्रोश की बाढ़ मात्र था उस चीत्कार में जिसने विवेक नाम की चीजको बहाकर ले गया था ; तू …तू…..मैं……मैं…..गाली गलोच …मारा-मारी समाज में विक्रियां न हुए नहीं हैं l परन्तु एक विकृति के विरोध में क्या अन्य विकृतियों को जन्म देना कहाँ की बुद्धिमानी हैं l ऐसा लगा जैसे मूक और असहाय व्यक्ति कोई तमाशा देख रहे हो l पंडित जी गुस्से के साथ खड़े थे l परिस्थिति अत्यंत ही जटिल थी l किसी प्रकार साहस बटोर कर दो लोगों ने(पखुरा ) उसे पकड़ कर यहाँ लाया l यदि मैं मन में अहम् पालता तो कबके तुम लोगो को वापस भेज दिया होता !
शार्की (आछुत) भी इंशान है………….बिलकुल इशी लिए कम से कम मानवता के खातिर पंडित जी का जान बचाना होगा I में सोचता हु.. “बहुत देरतक धनबहादुर सोच ने कहा – “एक ऊहाँ-पोह इस्तिथि लिए -हम -वापस लोट आए !
रास्ते में पहुँचकर अरुण ने संधा प्रकट किया –क्या धने जायेगा ? क्या कहूँ ?……..देखते हे सुबह तक I
“यदि नहीं गया तो ? ए निगेतिव?”
खेम प्रसाद ने चिंतित होकर कहा I “देखते है – जेसा होगा,बस निपट्ले I हम अस्पताल पहुचने तक बहुत लोग जुट गए थे I कोई बेंच पर बैठकर चिंता कर रहे थे कि खून मिलेगा या नहीं पण्डिताइन की आखों में आज आसुओ से छल छला रही थी वह पंडितजी के सोए-खटिया के पास खड़ी थी I बाकी जन बाहर थे I वे लोग रामप्रशाद के घर दोबार गए थे I समय एकपल-दो पल करके जल्दी -जल्दी दोड रहा था और डॉक्टर का दिया समय कम होने लगा था I एजी घडी समय काटने नहीं कट रहा था I आज समय इतनी तीब्रता से कट रहा था की हमें कुछ भी nahi सूझ रहा था
हमलोग धने का घर गए थे यह डिजी को भी पता नहीं था I या उन्होंने सोचा भी न था I पर हमारी आँखे बार -बार गेट की और निहारने लगती I कोई अगर गेट से आते तो भी हमें लगता धने का आतग में डॉ. कलिता के कमरे में घुश गया I घात थे कगजो में खोए हुए I डुग जुट की व्यवस्थI हुआ ? अभी तक तो नहीं हुआ हैं कोशिश कर रहे हैं l तिनसुकिया में ब्लड बैंक हैं l मैं फोन कर देता हूँ l जाकर देखिये , डॉ. पत्व्वारी से मिलकर बात कीजिये l बहुत-बहुत धन्यवाद डॉ. साहब बा….मैं बाहर निकलकर अरुण को बुलाने लगा चिन्तित लगरहे थे I समझाने में वह व्यस्त था I ऐन -वकत पर दिखाई पड़ा एक व्यकित गेट के अंदर दाखिल हो रहा है अरे वह तो धन बहादुर सार्डी था I हाफ पैंट पहना हुआ वह नाटे धन बहादुर उसवकत सबसे ऊँचा दिखाई दे रहा
था i जिसे पता नहीं था i वह

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