वह अक्सर जाने अनजाने में मेरे हृदय को तोड़ता रहा और मैं आहत होती रही शायद उसने कभी मुझे समझने की कोशिश न किया हो या फिर मैं ही उसे समझ न पायी कभी इसलिए वह हृदय तोड़ता रहा और मैं आहत होती रही फिर भी समानांतर हमारा पग आगे बढ़ता रहा …… वक्त बीतता रहा पर वह आज भी मन की दहलीज पर है वही खड़ा और मैं उस दहलीज को तोड़कर बाहर निकल आने में कामयाब ओ चुकी हूँ तभी तो आजकल मेरा मन आहत नहीं होता वल्कि उसे अच्छी तरह से समझने लगी हूँ उसे जानने लगी हूँ उसके लिए सुप्त हुए मेरा प्यार पुन: जागने लगा हैं अब मेरा हृदय टूटता नहीं प्यार में डूबा रहता हैं धीरे धीरे उसपर भी अब बदलाव नजर आने लगा हैं शायद वह भी मुझे समझने लगा हैं तभी तो हम आजकल साथ में मुस्कुराते हैं उसके हृदय से अब फूल बरसते हैं शायद काँटों को भेदकर निकलने का गुर अब उसने भी सीख लिया हैं l
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