सुबह की प्रतीक्षा (कविता)
सुबह की प्रतीक्षा
निष्तब्ध हैं रात
और ith
सड़के सुनसान
ठिठुरती सर्दी और
एक कमरा …
जहाँ
मद्धिम रोशनी में
लिहाफ ओढ़े
लोग सो रहें हैं
आराम से
और बाहर !
इस सर्द रात में
आसमान तले
कुछ बेघर परिवार
सुबह होने की प्रतीक्षा में
बाट जोहने को हैं
मजबूर!!
ऋता सिंह “सर्जना”
तेज़पुर
सुबह की प्रतीक्षा
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निष्तब्ध हैं रात
और
सड़के सुनसान
ठिठुरती सर्दी
और
एक कमरा …
जहाँ
मद्धिम रोशनी में
लिहाफ ओढ़े
लोग सो रहें हैं
आराम से
और बाहर !
इस सर्द रात में
आसमान तले
कुछ बेघर परिवार
सुबह होने की प्रतीक्षा में
बाट जोहने को हैं
मजबूर!!
ऋता सिंह “सर्जना”
तेज़पुर (असम )
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