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प्रतीक जाग गये, खुद तो जागो

घंटाघर
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खेड़ा पर सिक्के चिपकने के चमत्कार के बाद पूजा अर्चना करती महिलाएं।
खेड़ा पर सिक्के चिपकने के चमत्कार के बाद पूजा अर्चना करती महिलाएं।

::: खरी बात :::

 

 

 
रविवार की आधी रात से सहारनपुर और पड़ोसी जिलों के गांवों में खेड़ा जागने की खबरें भूचाल की तरह उठ रही हैं। खेड़ा दरअसल गांवों के देवता के प्रतीक स्थल होते हैं। इन पर आधी रात से श्रद्धा की बयार बह रही है। एक ऐसी श्रद्धा जिसके आगे तमाम वैज्ञानिक तर्क औंधे मुंह गिर जाते हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह किसी अफवाह के दौर में सच्ची बात। सहारनपुर के सैकड़ों गांवों में बने खेड़ों पर श्रद्धालुओं का रात से ही मेला लगा है। रात में नमी पर सिक्के चिपक रहे थे लेकिन श्रद्धा और श्रद्धालु बढ़े तो धूप बत्ती की गर्मी से ये सिक्के गिरने लगे। सिक्के चिपकने की घटना 12 बरस पहले गणेश जी के दूध पीने जैसी ही है।
यह भारतीयों का ही विश्वास है कि एक अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी को भी इस पर मुहर लगानी पड़ी। इस एजेंसी ने भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या और अव्यवस्था के बावजूद सब कुछ ठीक-ठाक चलते रहने के कारणों पर सर्वेक्षण किया। कुछ नहीं मिला लेकिन सर्वे एजेंसी को निष्कर्ष निकालना पड़ा कि यहां कोई व्यवस्था तो नहीं, अलबत्ता कोई ‘भगवान’ जरूर है जिसके भरोसे पर पूरा देश चल रहा है। इसे लोग अलग-अलग नाम देते हैं। अमेरिकी वैज्ञानिक चांद और मंगल ग्रह पर जीवन और पानी की तलाश कर रहे हैं। ऐसे दौर में जनता जब महंगाई, भूख और बेरोजगारी पर चिल्लाती है तो नेता, शासन व प्रशासन नहीं जागते, बल्कि चमत्कार जागते हैं। ऐसे चमत्कार जो इंसानी जरूरत के मुद्दों को न सिर्फ भुला देते हैं, बल्कि कुछ वक्त के लिए सुला भी देते हैं। नेता और नौकरशाह जानते हैं कि मुद्दों को आस्था के समंदर में कैसे डुबोना है। वर्तमान दौर तो वैसे भी व्यवसायिकता का है और आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। मार्केटिंग प्रोफेशनल जानते हैं कि अशिक्षित और पिछड़े लोगों की जेब से कैसे पैसा निकालना है। एक-एक गांव में एक खेड़े पर कुछ ही घंटों में हजारों रुपये के सिक्के तो चढ़ावे में आ गये। इससे इतर धूप बत्ती, प्रसाद, चादरें श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से खरीदे और चढ़ाये गये। इससे पहले हर किसी ने मोबाइल फोन से इस चमत्कार की जानकारी अपने हर शुभचिंतक और रिश्तेदार को दी। 24 घंटे में ही मोबाइल कंपनियों ने लाखों लाख रुपये कमा डाले।
पिछले हफ्ते ही एक एसएमएस सेलफोन पर सर्कुलेट हुआ। मैसेज था कि रात में ठीक 11 बजे चांद खाना काबा (सऊदी अरब) के ठीक ऊपर होगा। ऐसा पहली बार हो रहा है। अपने दोस्तों, शुभचिंतकों को इस बारे में संदेश भेजें, ताकि वे भी इस वक्त जो दुआ मांगे वह पूरी होगी। करीब तीन माह पहले रात्रि 12 बजे सेलफोन पर ही लोग एक दूसरे को बता रहे थे कि चांद में अल्लाह लिखा नजर आ रहा है। कुछ लोग फोन पर बता रहे थे कि यह अल्लाह नहीं, बल्कि त्रिशूल है। गौर से देखने पर पता चला कि चंद्रमा पर उसी का प्रतिबिंब पडऩे से ऐसी काल्पनिक आकृति बन रही है। चार माह पूर्व अदृश्य बिल्ली का आतंक पूरे जिले में चला जो पंजा मारती और गायब हो जाती थी। बिल्ली तब भी नहीं भागी, जब पुलिस प्रशासन ने अफवाहें फैलाने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी दी। तब भागी, जब एक बंगाली तांत्रिक ने 7 काले बकरों की बलि दी थी, कुछ कुंतल काली दाल, कुछ दर्जन मुर्गे भेंट में लिये और कई लाख रुपये इकट्ठे करके यह तांत्रिक दहशत की बिल्ली को साथ ले जाने का दावा करके रफूचक्कर हो गया। इस तांत्रिक ने बिल्ली की दहशत से ग्रसित एक किशोरी को कब्रिस्तान में ले जाकर भेंट चढ़ाये गये मुर्गों का खून भी पिलाया और डंडों से पीटा भी था। यह सब नौटंकी रमज़ान के पवित्र महीने में मुस्लिम इलाकों में 25 दिन तक चली। कुरआन में उल्लेख है कि रमजान के महीने में शैतान को भी कैद कर दिया जाता है। मगर, अंधविश्वास में लोग कुरआन का उपदेश भूल गये थे, उन्हें याद थी तो सिर्फ रहस्यमयी बिल्ली। तब भी मोबाइल कंपनियों, तांत्रिकों और तंत्र सामग्री विक्रेताओं को अतिरिक्त आय हुई थी। इस बार खेड़ा जागने की घटनाएं उन गांवों में अधिक हुई हैं जहां दलित बाहुल्य आबादी है। ये घटनाएं प्रेरित कर रही हैं कि जब प्रतीक तक जाग रहे हों, तब हम क्यों न जागें?

-एम. रियाज़ हाशमी

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