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पटरी से उतरी रेल राज्यमंत्री की ज़बान

घंटाघर
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Minister of State, Railway, Govt of India
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’63 हजार किलोमीटर रेलवे लाइनें और 10 हजार ट्रेनें। अगर एक-दो एक्सीडेंट हो जाते हैं तो चलता है….।’ 28 जनवरी 2009 को यह जवाब रेल हादसों से संबंधित सवालों पर देश के रेल राज्यमंत्री केएच मुनियप्पा ने लखनऊ में प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों को दिया। ऐसे जवाब के बाद पत्रकार भला किसी मंत्री से फिर दूसरा सवाल क्यों करेंगे और मंत्री के ऐसे जवाब का मक़सद भी शायद यही रहा। रेल राज्यमंत्री हैं तो ज़बान के पटरी से उतरने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है।
मैं मंत्री जी को याद दिलाना चाहता हूं कि इस वर्ष 20 दिनों में एक या दो रेल हादसे नहीं, बल्कि पूरे 7 हादसे हुए हैं। 02 जनवरी से लेकर 22 जनवरी 2009 तक इन हादसों का केंद्र भी उत्तर प्रदेश ही रहा। 02 जनवरी 2010 को तीन रेल हादसों में पांच ट्रेनें टकराईं। सूबे की राजधानी लखनऊ से 270 किमी दूर इटावा में लिच्छवी और मगध एक्सप्रेस टकराई, जिसमें ड्राइवर समेत 10 लोग घायल हुए। इसी दिन कानपुर के पनकी रेलवे स्टेशन के पास गोरखधाम और प्रयागराज एक्सप्रेस टकराईं जिसमें 5 यात्री मरे और 40 घायल हुए। तीसरा एक्सीडेंट प्रतापगढ़ में हुआ। सरयू एक्स्प्रेस एक मानवरहित क्रासिंग पर एक ट्रैक्टर ट्राली से टकरा गई। इसमें कोई घायल या हताहत तो नहीं हुआ, अलबत्ता ट्रेन का इंजन क्षतिग्रस्त हुआ। 03 जनवरी को असोम के हेलम और निज बोगांव के मध्य अरुणाचल एक्सप्रेस के सभी सात कोच पटरी से उतर गये।
16 जनवरी 2010 को कालिंदी और श्रमशक्ति एक्सप्रेस ट्रेनों की टक्कर में आगरा (यूपी) के टूंडला स्टेशन के पास 3 यात्रियों की मौत हुई और दर्जनों घायल हुए। 17 जनवरी 2010 को बाराबंकी (यूपी) के बरहा में मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर हरिहरनाथ एक्सप्रेस ने एक कार के परखचे उड़ा दिये। इसमें सवार दो लोग मौके पर ही मारे गये और चार बुरी तरह से जख्मी हुए। 22 जनवरी 2010 को आजमगढ़ (यूपी) के सथियाऊं स्टेशन के पास एक मालगाड़ी पटरी से उतर गई। इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन वाराणसी, आजमगढ़ और गोरखपुर रेल ट्रैक बाधित रहा। मंत्री जी! ये सात रेल हादसे इसी साल के पहले महीने के बीस दिनों में हुए हैं। आपसे पहले कईं रेल मंत्री ऐसे हादसों पर इस्तीफे दे चुके हैं।
दरअसल, रेल हादसों के पीछे की हक़ीक़त कुछ और है। बड़ा सवाल ये है कि कहीं इन हादसों के बहाने से रेलवे सेफ्टी फंड को फिर से आकार देने की कवायद तो नहीं की जा रही है। खन्ना रेल हादसे के बाद खन्ना कमेटी की अनुशंसा पर तत्कालीन रेल मंत्री नीतिश कुमार ने 1 अक्टूबर 2001 को 17 हज़ार करोड़ रुपये का रेल सेफ्टी फंड बनाया था। इसमें 12 हजार करोड़ रुपये की विशेष राशि वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई थी। जबिक शेष 5 हजार करोड़ का जुगाड़ रेलवे ने किया था। यह फंड खत्म हो जाने के बाद ऐसे क़यास लगाये जाते रहे हैं कि फिर से रेल सेफ्टी फंड को आकार दिया जा सकता है। रेलवे संरक्षा के लिए विशेष रूप से बनाये गये रेलवे सेफ्टी फंड के 16 हजार 318 करोड़ रुपये सात सालों में स्वाहा कर दिये गये। लेकिन हादसे दर हादसे रेल मंत्रालय के सुरक्षा, संरक्षा की पोल पट्टी लगातार खोल रहे हैं।
मंत्री जी को शायद यह भी याद नहीं होगा कि तय कायदे के अनुसार इस सेफ्टी फंड से रेल दुर्घटना के लिए जिम्मेदार माने जाने वाली पुरानी पटरियां, पुराने पुल, सिगनल, सिस्टम, एंटी कोलीजन डिवाइस और कई महत्वपूर्ण नैरोगेज लाइनों को ब्रॉडगेज में बदलने की विस्तृत योजना को अमलीजामा पहनाया जाना था। कितनी पटिरयां बदली गईं, कौन से पुल का पुनरुद्धार हुआ, कहां-कहां ब्रॉडगेज कनवर्जन हुआ? यह दावे के साथ रेलवे का कोई अधिकारी बताने को तैयार नहीं है। लेकिन रेल हादसे जब रुकने के बजाय बढ़ रहे हों और देश का रेल राज्यमंत्री कहे कि इतने बड़े तामझाम में एक-दो हादसे तो चलते हैं… फिर पूछने को बचा भी क्या?
सबसे शर्मनाक बात तो यह भी है कि एंटी कोलीजन डिवाइस के बारे में रेलवे में आने से पहले जोरदार प्रचार और दावे किये गये थे। बताया गया था कि नये टक्कर रोधी डिवाइस की मदद से रेल कोलीजन को रोका जा सकेगा। मगर अफसोस ऐसा नहीं हो सका। सच तो यह भी है कि एसीडी (एंटी कोलीजन डिवाइस) को अभी दक्षिण रेलवे, दक्षिण-मध्य रेलवे और दक्षिण-पश्चिम रेलवे में ट्रायल के रूप में आज़माया जाना बाक़ी है। अब रेलवे बोर्ड का कोई भी वरिष्ठ अधिकारी यह दावा करने को तैयार नहीं है कि एसीडी लग जाने से टक्कर नहीं होगी।
रेल मंत्रालय के आंकड़े भी इस बात के गवाह हैं कि वर्ष 2007-08 में जहां 8 बार आपस में टकराकर रेल दुर्घटनाएं हुईं, वहीं 2008-09 में ऐसी 13 दुर्घटनाएं हुईं और अब 2010 के शुरूआती 10 दिनों में ही 7 दुर्घटनाओं के बाद भी रेल राज्यमंत्री कहें कि …चलता है, तो मान लेना चाहिए कि इस देश को सिस्टम नहीं बल्कि भगवान चला रहा है। क्या रेल राज्यमंत्री थोड़ी सी शर्म महसूस करेंगे? 60 बरस का गणतंत्र आपसे ऐसे जवाब की उम्मीद तो नहीं रखता।
-एम. रियाज़ हाशमी

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