KANAK
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रूखा सुखा खाती हूँ
बच्चों का मल उठाती हूँ
मैं बंद कमरों में घुटती
अंदर ही अंदर चिल्लाती हूँ
बाहर की रौशनी मुझे
कभी नशीब होती नहीं
बदहवाश सी रहती हूँ
ऐसा नहीं कि रोती नहीं
उड़ती हुई तितलियाँ
मुझे भी बहुत भाती हैं
वो मुझसे मिलने आती है
जब मालकिन बाहर जाती है
खेलते हैं खिलौनों से बच्चे
मैं उठा उठाकर पकड़ाती हूँ
झाड़ू कटका करती हूँ और
बर्तन भी चमकाती हूँ
जालिम पेट ने मेरे
हाथ पौचा थमा दिया
कायर तंग माँ बाप ने
बचपन काम पर लगा दिया
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