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भारतीय छात्रों को क्यों देनी पड़ती है प्रतियोगी परीक्षाएं

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भारतीय छात्रों की दक्षता को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारतीय छात्रों की प्रतिभा का पुरे विश्व में  लोहा माना जाता है भारतीय छात्र पूरी दुनिया के हर क्षेत्र में काम करके पुरे विश्व को संचालित कर सकते है ।

गूगल के सीईओ से लेकर दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्पनिओं के सीईओ बनना नासा में अपनी प्रतिभा का परचम लहराना तथा इसी प्रकार की बड़ी उपलब्धियां भारतीय छात्रों ने हासिल की है और अपनी प्रतिभा का लोहा साडी दुनिया में मनवाया है फिर चाहे बात अमेरिकी राष्ट्रपति के 18 डाक्टरों की टीम में 13 भारत के बेटे बेटियां होने की बात हो इस प्रकार के कितने ही उद्धरण है ।

फिर हमरे देश की शिक्षा प्रणाली में ऐसी कौन सी कमी है कि भारत के नौजवान जब डिग्रियां लेकर कालेजों और

यूनिवर्सिटिओं में से निकलते है तो उनको नौकरी पाने के लिए अपनी काबिलियत को सिद्ध करने के लिए अलग से प्रतियोगी परीक्षाओं में न केवल अच्छे ग्रेड से पास होना पड़ता है बल्कि इसके लिए अलग से कोचिंग भी लेनी पड़ती है क्या भारतीय संस्थाओं से निकला विद्यार्थी इतना काबिल नहीं होता कि वो एक अच्छी नौकरी पा सके अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपना जीवन ख़ुशी ख़ुशी व्यतीत करे।

एक छात्र अपने जीवन के 13 से  15 साल ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट होने में लगा देता है अपने माता पिता का पैसा  और समय लगा देता है ।

अक्सर देखा गया है कि कई तो छात्र कर्जा तक ले लेते है परन्तु जब उनको इतना कुछ करने के बाद भी कोई नौकरी नहीं मिलती वो अपना कर्जा भी नहीं चूका पते या उनको ऐसी नौकरी करनी पड़ती है जो उनको नहीं चाहिए होती परन्तु कर्जे कि वजह से उनको वि नौकरी करनी पड़ती है लकिन उनकी सैलरी उतनी नहीं होती कि  उनकी पढ़ाई के लिए हुआ कर्जा जल्दी उतर सके।इससे उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है और कई बार हमारे देश ऐसे युवा गलत रास्तों पर चलकर अपनी और अपने सम्बन्धिओं की जिंदगी को ख़राब कर देते है डिप्रेशन में आये युवा तो अपनी जिंदगी तक को ख़तम कर देते है ।आज अगर किसी से भी पूछो कि सुसाइड कैपिटल कौनसी है आपको बिना समय लिए जवाब मिलेगा बैंगलोर।इतना ही नहीं बहुत से छात्र तो नशों की गिरिफ्त में आ जाते है वो न केवल अपना बल्कि समाज का भी नुक्सान करते है ।इन्ही करने से यह प्रश्न उठता है कि क्या एक विद्यार्थी के द्वारा की गयी 13 की पढ़ाई का कोई मूल नहीं है? अगर इसका मोल है तो फिर यह प्रतियोगी परीक्षाएं क्यों? पहले ही एक विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पर बहुत सारा पैसा खरच करके थक चूका होता है ऊपर से अभी कोई इनकम शुरू नहीं हुई होती कि कोचिंग क्लासेज की फीस का खर्चा उनपर आ जाता है।अगर यह प्रतियोगी परीक्षाएं इतनी ही जरुरी है तो इनकी तयारी डिग्री की पढ़ाई के साथ साथ कालेजों में ही क्यों नहीं करवा दी जाती इससे विद्यार्थिओं के पैसे और समय दोनों की बचत होगी और एक अच्छा विद्यार्थी समय पर नौकरी पायेगा तो उसका जीवन खुशाल होगा और वो समाज तथा देश के निर्माण में अपना कीमती योगदान पा सकेगा। इसका एक और पहलू भी है जो विद्यार्थी एक सामान डिग्री एक सामान ग्रेड लिए हुए है परन्तु एक का ग्रेड प्रतियोगी परक्षाओं अच्छा है दूसरे का अच्छा नहीं है तो दोनों के पास एक सामान डिग्री होते हुए भी दोनों में कितना बड़ा अंतर आ जाता है। इसका अर्थ क्या कि जिसने प्रतियोगी परीक्षा पास नहीं की उसकी डिग्री और उसकी योग्यता किसी काम की नहीं क्यों उसकी डिग्री को काबिल नहीं समझा जाता।

अगर यह प्रतियोगी परीक्षाएं इतनी ही जरुरी है तो इनकी तैयारी डिग्री की पढ़ाई के साथ साथ ही क्यों नहीं करवादी जाती? इस समस्या का समाधान होना चाहिए नहीं तो कोचिंग सेंटर वालों की लूट इसी प्रकार चलती रहेगी वो अपनी मन मानी फीस वसूलते रहेंगे। विद्यार्थी हमेशा एक निराशा के माहोल में ही रहेगा।

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