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हालिया उपचुनावों के साथ-साथ कर्नाटक के नतीजे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। जिस नोटा फैक्टर के चलते गुजरात में बीजेपी की जीत का अंतर काम हो गया था, उसी के चलते कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनते बनते रह गई और उपचुनावों के नतीजे तो खैर सभी के सामने हैं। तथाकथित राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी के खिलाफ जा रहे इन नतीजों को विपक्ष की जीत समझने की खुशफहमी पाले हुए हैं। उन सभी राजनीतिक पंडितों को यह समझना बहुत जरूरी है कि आज की तारीख में बीजेपी की हार का कारण बीजेपी का मुख्य समर्थक ही हो सकता है। किसी और के बस की यह बात नहीं है कि वह बीजेपी को परास्त कर सके।
बीजेपी के मुख्य वोट बैंक को यह लग रहा है कि मोदी सरकार उसकी अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरी नहीं उतर रही है और पिछले 4 सालों में “सबका साथ सबका विकास” के अलावा जो और कुछ होना था, वह सब बीजेपी करने में पूरी तरह नाकाम रही है। आइए, अब समझते हैं कि ऐसे कौन से मुद्दे हैं, जिनके चलते बीजेपी के वोट बैंक समझे जाने वाले समर्थकों में गुस्सा है और वे या तो वोटिंग करने जा ही नहीं रहे हैं या फिर नोटा का बटन दबा कर विपक्षी पार्टियों को अपरोक्ष रूप से मदद कर रहे हैं :
1- बीजेपी यह भूल गई है कि 2014 की जीत भ्रष्ट और देशद्रोही ताकतों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए थी, लेकिन सभी भ्रष्ट और देशद्रोही खुले घूम रहे हैं और एक महागठबंधन बनाने की तैयारी में हैं। सरकारी एजेंसियों ने इन लोगों को हिरासत में लेकर “थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट” देने का काम क्यों नहीं किया, जनता यह सवाल तो पूछेगी।
2 – जिस देश में कांग्रेस पार्टी ने पिछले 70 सालों से जाति और साम्प्रदायिकता के विष बीज बो रखे हों, वहां सिर्फ विकास की ढपली बजाने से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं।
3- कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है, उससे लोग बेहद आहत हैं। कश्मीर को पूरी तरह से सेना के हवाले करके मुफ्ती ,अब्दुल्ला और हुर्रियत समेत सभी नेताओं की सिक्योरिटी और आर्थिक मदद ख़त्म कर देनी चाहिए ताकि सेना अपने तरीके से इन देश विरोधी ताकतों से निपट सके.
4- विपक्ष शासित राज्यों में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को लगातार मारा और प्रताड़ित किया जा रहा है, लेकिन केंद्र सरकार मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रही है। इन सभी राज्यों में समय रहते राष्ट्रपति शासन लगाकर उनके मुख्यमंत्रियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए थी, जो दुर्भाग्यवश नहीं की गई।
5- जिन भ्रष्टाचारियों को कोस-कोस कर बीजेपी 2014 में सत्ता में आई थी, वे सभी देशद्रोही हुंकार लगाते हुए खुले घूम रहे हैं और 2019 में महागठबंधन बनाने की तैयारी में हैं। इन सभी को हिरासत में लेकर “थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट ” दिए जाने की जरूरत थी, लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
6-कश्मीर में संविधान की धरा ३७० ख़त्म करने और पूरे देश में सामान आचार संहिता लागू करने पर भी सरकार पूरी तरह निष्क्रिय दिखाई दे रही है. तेजी से बढ़ती जनसँख्या को रोकने के लिए भी सरकार की तरफ से कोई प्रयास नज़र नहीं आ रहा है.
एक अनुमान के अनुसार, जितने लोगों ने बीजेपी को 2014 में वोट दिया था, उनमें से कम से कम 20 पर्सेंट लोग ऊपर लिखे कारणों की वजह से नोटा का बटन दबा रहे हैं।
सरकार अगर ऊपर लिखी बातों पर एक्शन लेना चाहे, तो अभी भी बहुत समय है लेकिन अगर सरकार की मंशा ही “सेक्युलरिज्म” की ढपली बजाकर धारा 370 और समान आचार संहिता की अनदेखी करने की है , तो फिर सरकार नोटा दबाने वालों को दोष कैसे दे सकती है ?
इस बात में भी कोई शक नहीं है कि अगर सरकार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत ऐक्शन लेकर ऊपर लिखे मसलों को फटाफट हल करना शुरू कर दिया तो बीजेपी की 2019 के लोकसभा चुनावों में 400 या उससे अधिक सीटें आने से कोई नहीं रोक सकता।
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