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नोट बंदी से केजरीवाल बेचैन क्यों ?

AGLI DUNIYA carajeevgupta.blogspot.in
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जब से पी एम मोदी ने काले धन के खिलाफ अपनी निर्णायक जंग का एलान करते हुये, पुराने 500-1000 के नोट बंद किये हैं, केन्द्र की भाजपा सरकार और पी एम मोदी खुद केजरीवाल समेत सभी विपक्षी नेताओं के निशाने पर हैं. केजरीवाल जो खुद अन्ना हज़ारे के साथ एक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करने की सफल नौटंकी कर चुके हैं, उनकी बेचैनी विपक्ष के बाकी सभी नेताओं से काफी ज्यादा लग रही है. नोट बंदी से केजरीवाल इतने बेचैन क्यों हैं, इस पर सभी लोग अपने अपने ढंग से कयास लगा रहे हैं लेकिन असली कारण कोई भी खुलकर नही बताना चाहता है.

केजरीवाल की बेचैनी का विश्लेषण करने से पहले हमे उन बातों पर ध्यान देना होगा, जिनके ऊपर इस नोट बंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

(1) नोट बंदी से सबसे ज्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है, जो लोग 500 और 1000 के नकली नोटों के कारोबार मे लिप्त थे. जैसा कि सभी को मालूम है कि नकली नोटो की छपाई का सारा काम पाकिस्तान मे होता था और व़हाँ से इन नकली नोटों को भारत मे जारी किया जाता था. पाकिस्तान से भारत मे फैलाया जा रहा आतंकवाद इसी नकली नोटों के कारोबार की बदौलत ही पिछले कई दशकों से बे रोक टोक चल रहा था. हमारे अपने देश मे ऐसे लोगों की कमी नही है जो खाते हिन्दुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं-दूसरे शब्दों मे कहें तो इनकी वफादारी अपने देश के प्रति ना होकर पाकिस्तान के प्रति ज्यादा है. नोट बंदी से पाकिस्तान को जो झटका लगा है, उसे यह आतंकी देश कभी भूल नही पायेगा. अभी हाल ही मे पाकिस्तान मे नकली नोटों को छापने वाले सरगना ने नोट बंदी की वजह से खुदकशी भी कर ली है.

(2) नोट बंदी से आतंकवादियों के साथ साथ नक्सली लोगों को भी गहरा झटका लगा है. काफी नक्सली लोगों ने नोट बंदी के बाद अपनी नक्सली गतिविधियों को बंद करने का एलान करते हुये अपने आपको देश की मुख्यधारा के हवाले कर दिया है.

(3) नोट बंदी का तीसरा सबसे बड़ा झटका उन लोगों को लगा है, जिन्होने देश और जनता को लूट लूट कर टैक्स की चोरी करके अपने पास काले धन का भंडार एकत्रित किया हुआ था.

(4) नोट बंदी से जिस आम जनता पर असर पड़ा है, उसे हम चौथे नंबर पर रख सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हे तकलीफ तो खूब हो रही है, लेकिन देश हित मे इन्होने इस तकलीफ को अस्थायी रूप से सहने का मन बना लिया है. विपक्षी नेताओं और न्यायालय के उकसाने के बाबजूद आम जनता ने जिस सहनशीलता और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसे विपक्षी नेताओं के मुंह पर एक तमाचा ही समझा जाना चाहिये.

कुल मिलाकर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि जो कोई भी नोट बंदी से बहुत ज्यादा परेशान है और उसे वापस लेने की मांग भी कर रहा है, वह ऊपर लिखी हुई किसी ना किसी केटेगरी मे आता है और केजरीवाल किस केटेगरी मे आते हैं, इसका बेहतर जबाब वह खुद ही दे सकते हैं. इससे पहले कि सोशल मीडिया मे केजरीवाल के बारे मे कुछ मनगढ़ंत कयास लगाये जाएं, उन्हे खुद आगे बढ़कर यह बताना चाहिये कि वह ऊपर लिखी हुई  केटेगरी मे से किस केटेगरी मे आते हैं.

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