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जागरण जंक्शन फोरम के परिप्रेक्ष्य में सबसे पहले तो जागरण जंक्शन को दिली मुबारकबाद एक बिलकुल नयी और सशक्त पहलकदमी के लिए. सारा देश इस समय ऐसे झंझावात से गुजर रहा है जहॉ पर हर एक व्यक्ति को अपनी-अपनी भूमिका निर्धारित करनी जरूरी है. तमाम ऐसे मुद्दे देश के सामने हैं जिनके समाधान के लिए कमर कस के तैयार रहना आवश्यक है. भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, राजनीति की विषाक्त लहर जिसमें सब कुछ समो लेने की क्षमता है साथ ही तमाम ऐसी सामाजिक कुरीतियां जिनकी वजह से लोगों को अनैतिक कर्मों में लिप्त होना पड़ता है और जिसे मजबूरी के नाम पर उचित ठहरा दिया जाता है. इसके अलावा पथभ्रष्ट होती युवा पीढ़ी जिसके लिए संस्कार और नैतिकता केवल मजाक उड़ाने की बात हो चली है.
इस बार जागरण जंक्शन ने बड़ा कदम उठाते हुए एक फोरम की शुरुआत की जिसके लिए इस सप्ताह का विषय “कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार” चुना. वस्तुतः इस मुद्दे पर इस समय सारा देश एकीकृत दिखाई दे रहा है. लोगों को एक उम्मीद की किरण दिखने लगी है कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाई जा सकती है. अब भ्रष्टाचार मिटाना केवल बातों तक सीमित ना रहकर कृतित्व में भी दिखाई देने लगा है जिसे लोकतांत्रिक राष्ट्र के संदर्भ में भारी उपलब्धि मानी जा सकती है. कम से कम अब लोग एक सार्थक आशा तो पाल ही चुके हैं कि यदि प्रयास सही दिशा में हों तो निकट भविष्य में जरूर भ्रष्टाचार में कुछ निश्चित रूप से कमी लाई जा सकती है.
मेरी नजर में भ्रष्ट आचरण केवल आर्थिक लाभ लेने से कहीं ज्यादा व्यापक है. हम देश-दुनियां के हितों के दृष्टिकोण से क्या सोचते हैं और अपनी निजी जिंदगी में कितने नैतिक रह पाते हैं? हम दूसरों की सुविधा का कितना ख्याल रखते हैं और दूसरों को कितना स्पेस प्रोवाइड करते हैं? हमारे कृतित्व से दूसरों के लिए कितनी सुविधा या परेशानी का सृजन होता है. हम अपने काम या तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति हेतु जितने प्रयासरत होते हैं क्या हम उतना ही अन्य के हितलाभ के लिए भी कर सकते हैं?
व्यक्ति-व्यक्ति से शुरुआत करके ही भ्रष्टाचार को फिर से उसकी वास्तविक स्थान पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है. आज देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार से निपटने की कवायद की जा रही है लेकिन जरा सोचिए भ्रष्ट और अनैतिक रवायतों को अपना चुकी जनता से आप कितनी आशाएं और उम्मीदें लगाएंगे. भ्रष्ट राजनीतिज्ञ कहीं आसमान से नहीं पैदा हुए हैं बल्कि वे हमारी भ्रष्ट नीतियों के उत्पाद हैं. नैतिक शिक्षा की पूर्णतः उपेक्षा करके हमने उच्च शिक्षित ऊंची कमाई वाले प्रोफेशनल्स तैयार किए, बेटी की शादी के लिए भ्रष्ट तरीके से भारी दहेज का इंतजाम किया, चुनाव लड़ने और सत्ता शिखर पर पहुंचने के लिए हर वो कृत्य कर डाला जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.
एक-एक व्यक्ति अपने भीतर झांक कर देखे कि वो इस स्थापित व्यवस्थागत खामियों में अपने को कितनी आसानी और बिना किसी आत्मग्लानि के एडजस्ट करता रहा है. व्यवस्था के निचले पायदान पर जितना भ्रष्टाचार है वही आगे जाकर एक बड़े रूप में सामने आता है. भ्रष्टाचारी हमारी ही महत्वाकांक्षाओं की देन हैं. जब हम मतदान के लिए व्यक्ति चुनते हैं तो सबसे पहला ख्याल आता है कि जिसे चुनना है वो कितना दबंग और कद्दावर है ताकि हमारी नाजायज मांगों को भी पूरा कराने की जहमत उठा सके. सीधे-सादे, शुद्ध आचार युक्त और संस्कारवान व्यक्ति हमारी निगाहों में केवल दया के पात्र होते हैं जबकि हत्यारे डाकू, बलात्कारी, माफिया हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं.
जनता के बीच जाकर देखने पर पता चलता है कि जनता क्या चाहती है. किसी भी चुनाव के आरंभ से जोड़तोड़-जुगाड़ की भूमिका तैयार होने लगती है. “अपनी पसन्द का उम्मीदवार” एक कड़वी सच्चाई बयॉ करता है. अपनी पसन्द का अर्थ कि आखिर वह कौन होगा जो हमारे हितों को तवज्जो देगा, जो हमारे लिए, हमारे समुदाय के लिए, हमारी जाति के लिए बेहतर रहेगा?
इन्हें आप कुत्सित मनोवृत्ति कह सकते हैं जिनसे छुटकारा पाना बेहद जरूरी है. याद रहे कि बूंद-बूंद से ही समुद्र भरेगा, कोई देवदूत या किसी तारणहार की आस में आप सब कुछ गलत करते चले जाएं और व्यवस्था को दोष देकर आत्मग्लानि और अपराधबोध से मुक्ति पा लें तो कोई भी सुधार केवल और केवल कागजी रह जाएगा. मूलभूत तब्दीलियों के लिए मूलभूत बदलाव अपेक्षित हैं और इसके लिए आत्मबोध होने के साथ त्याग और समर्पण की उदात्त भावना का प्रकटीकरण अनिवार्य हैं.
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